________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
डा. भण्डारकर की मान्यता है कि भारत में जातियों का मिश्रण होता आया है। इन जातियों के अपने देवता होते थे। आर्यों के हाथ में भारत का अधिकार आने से पूर्व कुछ जातियाँ लिंग की उपासना करती थी। लिंग पूजा को आर्यों ने स्वीकार कर लिया था।
आर्य शब्द की व्युत्पत्ति ऋधातु से बताई गई है, जिसका अर्थ गति होता है। आर्य कदाचित गत्वर (घुमक्कड़) लोग थे। आर्यों ने सबसे पहले 'ऋग्वेद' की रचना की। ऋग्वेद' आर्यों का ही नहीं, विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है। कोई इसे पचहत्तर हजार वर्ष पुराना मानता है, तो कोई ईसा से 15000 वर्ष पूर्व की चीज मानते हैं। मेक्समूलर ऋग्वेद की रचना ईसा से 12001000 वर्ष पूर्व, विंटरनिज के अनुसार 2300 वर्ष पूर्व और जैकोबी के अनुसार ईसा के 6500 वर्ष पूर्व का माना है।
प्राचीन काल में धंधों के आधार पर समाज को विभक्त करने का कई देशों में रिवाज था। ईरानी समाज में चार जातियाँ थी। पारसियों के अवेस्ता में चार जातियाँ या वर्गों का विधान था -
___ 1. अध्रवन (ब्राह्मण) 2. रथैस्ताएं (क्षत्रिय) 3. वासयोष (वैश्व) 4. हुतोश (शूद्र)।
भारतीय साहित्य में वर्ण शब्द का उल्लेख पहले और जाति शब्द बहुत बाद में मिलता है। मंगलदेव शास्त्री ने माना है कि हमें वैदिक संहिताओं में जाति शब्द नहीं मिला है। इसी से यह अनुमान लगाया गया कि वर्णभेद की उत्पत्ति रंगभेद के कारण हुई होगी। ब्राह्मणों का वर्ण श्वेत, क्षत्रियों का लाल, वैश्यों का पीत और शूद्रों का श्याम वर्ण होता है, यह बात महाभारत में कही गई है।
'निरुक्त' में श्री यास्काचार्य ने वर्ण शब्द की उत्पत्ति वरण अथवा चुनाव करने वाली वृ (वृत वरणे) धातु से की है। इस प्रकार वर्ण वह है, जिसको व्यक्ति अपने कर्म और स्वभाव के अनुसार चुनता है।
परम्परागत सिद्धान्त की दृष्टि से 'पुरुषसूक्त' के अनुसार विश्वपुरुष में ब्राह्मण मुख, क्षत्रिय बाहु, वैश्य जंघा और शूद्र का स्थान पैरों को प्राप्त है। इस प्रकार ये चारों वर्ण विश्वपुरुष के प्रतीकात्मक अंग है। मुखरूपी ब्राह्मण का कार्य विद्यादान है। बाहुरुपी क्षत्रिय का कार्य समाज की रक्षा करना है। जाँघ के प्रतीक से वैश्य वर्ग का कार्य व्यापार और वणिकता है। पैर होने के कारण शूद्रों का प्रमुख कार्य अन्य तीनों वर्गों की सेवा है।
ऋग्वेद के 'पुरुष सूक्त' के अनुसार प्रजापति द्वारा जिस समय पुरुष विभक्त हुए तो उसको कितने भागों में विभक्त किया गया, इनके मुख, बाहु, कर और चरणकहे जाते हैं। ब्राह्मण इस पुरुष के मुख से, क्षत्रिय जाति भुजा से, वैश्य जाति उरू से और शूद्र जाति दोनों चरणों से
1. भारतीय संस्कृति के चार अध्याय, पृ. 35
For Private and Personal Use Only