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बन करते हैं । ६. सुन्दर, प्रसुन्दर स्थान में विहार करते हुए स्त्रियांदिक को देखने में अन्ध, कुतीर्थों के लिये लङ्गड़े, विकथा करने के लिये मूगे, शरीर से निस्पृह एवं मुक्ति को सिद्ध करने की तीव लालसा है, ऐसे अनेक प्रकार के गुणों से युक्त मुनि के विहार शुद्धि होती है।
(१) भिक्षा शुद्धि-१. शरीर की स्थितिके लिये उपवासादिक के पारण के दिन योग्य घर में नव कोटि से शुद्ध माहार भिक्षावृत्ति से लेते हैं उनके भिक्षा शुद्धि होती है। २. यथालन्ध सरस, नीरस जैसा शुद्ध आहार मिलता है उसे बिना स्वाद से ग्रहण कर लेते हैं । ३, अशुभ माहार के मिलने पर खेद खिन्न एवं शुभ साहार के मिलने पर वे सन्तुष्ट नहीं होते । अशुद्ध पाहार का दूर से ही त्याग करते हैं। ४. शुद्ध आहार लेने पर भी प्रतिक्रमण करते हैं ऐसे अनेक गुणों से युक्त मुनि के भिक्षाशुद्धि होती है।
(६) मान शुद्धि-१. अभिमान से रहित कालादि शुद्धि पूर्वक एकाग्रचित्त से अङ्ग पूर्वी का पठन-पाठन करते हैं उनके ज्ञान शुद्धि होती है । २. जो मुनि अनेक प्रकार की ऋद्धियां एवं मति आदि बार ज्ञान से युक्त हैं जो सदा ! ध्यान में लीन हैं। ३. त्रियोग शुद्धि पूर्वक जो सदा समस्त प्रङ्गों को पढ़ते पढ़ाते हैं, उनका चिन्तवन करते हैं, किंचित् भी प्रसिद्धि एवं बड़प्पन की इच्छा नहीं करते ऐसे उपरोक्त कहे अनेक उपाय करते हैं उन्हीं मुनि के ज्ञान शुद्धि होती है।
(७) उम्झन शद्धि-१. शरीर में प्रक्षालन आदि संस्कार भी स्त्रियों में स्नेह उत्पन्न करने बाला है, अत्यन्त अशुभ मोहरूपी शत्रु को उत्पन्न करने वाला है। इस प्रकार जो परिग्रह में किसी समय भी मोह उत्पन्न नहीं करते। उनके उज्झन शुद्धि होती है। २. शरीर के संस्कार से रहित मैकड़ों रोगों के माने पर उनके प्रतिकार रहित जो शरीर भोग एवं बन्धुवर्ग के पारमार्थिक स्वरूप को विचार कर उनमें स्नेह नहीं करते उन्हीं के उज्झन शुद्धि होती है।
(८) वाक्य शुद्धि-१. जो मुनि धर्म की सिद्धि के लिये एकान्तमत से रहित अनेकान्तमयी हित-मित प्रिय वचन बोनले, उनकै बाक्यप्शुद्धि होती है। २. धर्म से विरुद्ध वचन पूछने या विना पूछे कभी नहीं बोलते 1 ३, अनेक प्रकार के अनर्थ देखते एवं सुनते हैं एव सार-प्रसार पदार्थ को जानते हैं फिर भी वे गूगे के समान बने रह कर किसी की निंदा स्तुति नहीं करते हैं । ४. पाप की खानि विकथाओं को वे मुनि कभी नहीं करते। ५. वे मुनिराज संवेग वैराग्य को उत्पन्न करने वाली महापुरुषों की श्रेष्ठ कथाओं को कहते हैं उन्हीं के वाक्य शुद्धि होती है ।
(e) तप शुद्धि-१. जो व्रत गुप्ति आदि से सुशोभित हैं प्रमाद रहित अपनी शक्ति के अनुसार बारह प्रकार के तपों को ज्ञानपूर्वक करते, उनकं तप शुद्धि होती है । २. शरीर से असक्त
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