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प्रतिज्ञा की है। ३. मुनियों की भावना को जो सा पूर्वक सुनते हैं वे भव्य जीव स्वर्ण के समान शुद्ध होते हैं। ४. मुनियों के लिये दस शुद्धियों का कथन किया ।
(१) लिग शुद्धि-१. संसार शरीर आदि का स्वरूप समझकर धनादि का मोह त्याग कर विशुद्ध जो जिन लिंग धारण करते हैं उनके लिंग शुद्धि होती है। २. जो शरीर का संस्कार नहीं करते. जिनका शरीर मल से युक्त होने पर भी जो कम मत से सदा दूर रहते हैं । ३. त्रियोगी की शुद्धता पूर्वक द्वादशांग रूपी अमृत से भरे हुए सर्वोत्कृष्ट धर्म तीर्थ का चिन्तवन करते हैं। ४. जो काम भोग से सदा विरक्त हैं एवं जिन मुद्रा के धारी हैं। ५. जो प्रमाद रहित होकर चरित्राचरण का पालन एवं दस धर्मों को धारण करते हैं। ६. इस प्रकार उपरोक्त अनेक निर्मल उपायों से अपने भुद्ध आचरणों का पालन करते उनके लिंग शुद्धि मानी गयी है ।
(२) व्रत शुद्धि-१. जो बुद्धिमान मुनि अष्ट प्रवचन मातृकानोंसे युक्त पंच महानतोंका पालन करते हैं उनके व्रत शुद्धि है। २. जो मुनि परिग्रह से रहित हैं फिर भी रत्नत्रय परिग्रह को धारण करते हैं। ३. मुनियों के अयोग्य बाल के अग्रभाग के करोड़वें भाग परिग्रह को भी स्वप्न में भी इच्छा नहीं करते हैं। ४. जो अत्यन्त संतोषी है। ५. सदा मौन धारण करते हैं। ६. सूर्यास्त के पश्चात् विहार नहीं करते हैं । ७. बालक के समान निर्विकार दिगम्बर शरीर को धारण करते हैं। ८. इसप्रकार जो व्रतों को निर्मल पालन करते हैं उन महामुनि के व्रत शुद्धि होती है।
(३) बसतिका शुदि- १. जो धीर-वीर विशाल हृदय वाले मुनि ध्यान की सिद्धि के लिये गुफादि एकान्त स्थान में निवास करते हैं उनके वसतिका शुद्धि होती है। २. ऐसे मुनि गांव में एक दिन एवं नगर में पांच दिन रहते हैं । ३. एकल विहारी, निर्भीक वनों में निवास करते हैं। ४. शरीर से ममत्व धारण नहीं करते हैं। वववृषभनारायसंहनन को धारण करने वाले वे मुनिराज श्रेष्ठ ध्यानादि की सिद्धि के लिये सैकड़ों उपसर्ग आ जाने पर अथवा परीषहों के प्रा जाने पर भयानक जीवों से घोर दुष्कर वन में ही निवास करते हैं । ५. सिंहाविक को भी शब्दों को सुनकर रंचमात्र भी चलायमान नहीं होते हैं उन्हीं के वसतिका शुद्धि होती है ।
(४) बिहार शुशि-१. स्वतन्त्र विहार करनेवाले भुनिराज सूर्योदय के बाद एवं सूर्यास्त होने के पहले धर्म प्रवृत्ति के लिये ईर्यापय से गमन करते हैं। उनके उत्तम विहार शुद्धि होती है। २. जो मुनि जीवों की योनि आदि का ज्ञान करके उनकी नवकोटिसे कभी विराधना नहीं करते । ३. वे अपने हाथों में डण्डा प्रादि हिंसा के उपकरणों को कभी नहीं रखते हैं। ४. घर में काटा या तीक्ष्ण पत्थर के टुकड़े की धार से छिद जाय उसकी पीड़ा होने पर भी कभी क्लेश नहीं करते हैं। ५. मात्मा के चतुर्गति भ्रमण का निरन्तर चिन्तवन करके जो निराकुल चित्त एवं वैराग्यभाव से मागम का चिन्त
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