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१४. तीन दिन तक किस प्रकार स्वाध्याय, आहार विहारादि चर्या की परीक्षा करते हैं। तीन दिन पश्चात् अरगन्तुक साधु का नाम, गुरू, दीक्षादिक का काल पूछकर फिर विधि पूर्वक श्र तादिक का पठन-पाठन का प्रादेश देते हैं । १५. अगर भागन्तुक साधु के व्रताचार शुद्ध नहीं है तो उनको शुद्धि के लिये प्रायश्चित्त देते हैं अगर प्रायश्चित्त स्वीकार नहीं करता तो उसे संघ में नहीं रखते हैं । १६. इस प्रकार पाठकगण स्वयं अनुभव करेंगे कि आचार्य कितने अनुभवी एवं व्यवहार कुशल होते हैं। १७. पुनः आगन्तुक साधु किस प्रकार द्रव्यादिक की शुद्धि पूर्वक अत अभ्यास करते हैं। यदि नहीं करते हैं तो क्या हानि होती है, इसका वर्णन किया है। १८. आगन्तुक साधु को स्वगण के समान ही परगण के आचार्य से पूछकर सब कार्य करना चाहिये। १६. मुनि को अर्जिकादि स्त्रियों के साथ बात-चीत करना भी अनेक दोष उत्पन्न करने वाला है। अतः बिना प्रयोजन इनसे बातचीत नहीं करना चाहिये । २०. अकेले मुनि से अकेली आयिका प्रश्न करे तो व्रतों को शुद्धि के लिये मुनि को उत्तर नहीं देना चाहिये।
२१. तरुण मुनि एवं तरुण अर्जिका बातचीत करे तो ५ प्रकार के दोष लगते हैं। २२. अजिका के आश्रम में मुनि को स्वाध्यायादि क्रिया करने का निषेध किया। उसी प्रकार अजिका को भी मुनि के आश्रम में स्वाध्यायादि क्रिया नहीं करना चाहिये । २३. आर्यिका को प्रतिक्रमण नादि करवाने वाले आचार्य के गुणों का निर्देश किया है एवं मुनियों के योग्य समाचारों को आर्यिकानों को भी पालन करना चाहिये । २४. प्रायिकाओं को वृक्ष-मूलादि योग धारण करने का निषेध किया । २५. पुनः प्रापिकाओं के विशेष समाचार का निर्देश करते हुए मायापारी लोभादि से रहित, लज्जादि गुणों सहित एक-दूसरों की परस्पर रक्षा करते हुए रहना चाहिये । २६. शरीर पर पसीने से धूल या नाकादि का मल लगा हो तो इससे कोई हानि नहीं परन्तु अपने शरीरका संस्कार तो कभी नहीं करना चाहिये । २७. उन्हें अनुप्रेक्षादि के चिन्तवनादि शुभ ध्यान में ही समय बिताना चाहिये। २८. मायिकाओं के दो तीन अथवा अधिक दस-बीस प्रायिकाओं के साथ रहना चाहिये। २६. अकेली आयिका को किसी भी समय विहार या गमन नहीं करना चाहिये। ३०. भिक्षादि के लिये भी ५-७ वृद्ध मायिकाओं के बीच में अथवा कुछ आगे-पोछे चलने की प्रेरणा दी है। ३१. आर्यिका आचार्य बन्दनादि के योग्य समय में जाती है तो आचार्य से ५ हाय, उपाध्याय से ६ हाथ, साधु से ७ हाथ दूर बैठकर गवासन से भक्तिपूर्वक नमस्कार करती है । इस प्रकार आचार्य श्री ने मुनियों के समाचार का वर्णन करते हुए सातवां अध्याय पूर्ण किया।
आठवां अधिकार १. प्राचार्य श्री ने १७३ फ्लोफों में मुनियों की भावना का वर्णन किया है। २. पंच परमेष्ठी एवं सरस्वती देवी आदि को नमस्कार रूप मंगलाचरण करके मुनियों की भावना के कथन की
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