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मेरु मंदर पुराण कुञ्जरं कडावि वाळकुडिंग नू कोडि ।
ईजि मानगर मिव्वारियर् कैयालियेड़ दोंड़े ॥२८॥ अर्थ-उस नगर के गोपुर द्वार १००० एक हजार तथा छोटे २ द्वार ७०० सात सौ हैं। वहां पर चिरस्थायी बलिपूजा करने के लिये एक हजार बलिपीठ हैं । चारों कोनों में बड़े २ हाथी हैं, जिनकी रक्षा करने वाले महावत तथा अपनी आजीविका उपाजित करने वाले अन्य २ सौ करोड़ मनुष्य हैं । इस प्रकार विशाल कोट से घिरा हुमा वीतशोक नाम का नगर महान् शोभा से सम्पन्न है ।
भावार्थ-उस वीतशोक नामक नगर के गोपुर द्वार एक हजार हैं । और छोटे द्वार ७०० हैं । वहां पर निरंतर बलि पूजा करने के लिये एक हजार बलिपीठ हैं । उस गोपुर के चारों कोनों में हाथियों तथा उनकी रक्षा करने वाले महावत और जीविका द्वारा पेट भरने वाले नौकर व अन्य मनुष्यों की संख्या सौ करोड़ है । इस प्रकार सु दर दीवारों से घिरा हुअा वीतशोक नामक सुन्दर नगर स्वर्ग की अल्कापुरी नामक नगरी के समान शोभायमान प्रतीत होता है ॥२८॥
सुदरं मलगळे न्ने सुन्नतादु कुकुमम् । सेंदन कुबंबु मेरपरंदु पाडिसूळ दग ॥ ळंदर तरुक्कन येनिंदुसूळ किडंद दो।
रिदिर तनुविन बन्न मेन्न दन्न दागुमे ॥२६॥ अर्थ-उस नगर के चारों ओर खाई बनी हुई है और उसके किनारे अत्यन्त मुगन्धित फूलदार वृक्ष हैं तथा तेल, चूना, पुष्प, धातु, रोली आदि अनेक प्रकार के द्रव्य उस खाई में भरे हुये पानी के ऊपर तैरते हुये चमकते हैं । रंग वगैरह से सुशोभित उस नगर की शोभा इस प्रकार दीखती है कि मानों सूर्य ने उसे चारों ओर घेर रक्खा हो । उपमा से रहित इन्द्र धनुष वर्ण के समान वीतशोक नामक नगर अत्यन्त शोभायमान दृष्टिगोचर होता है ।
भावार्थ-उस नगर के चारों ओर खाई घिरी हुई है जिसके किनारे फूलदार वृक्ष लगे हुए हैं। उसके अन्दर सुगन्धित तेल, चूना, पुष्प घातु, रोली कुकुम आदि द्रव्यों से मिश्रित वस्तुयें पानी पर चमकती रहती हैं । स्त्री और पुरुष अपने शरीर में उसका लेप करके उस खाई के जल से स्नान करते हैं, जिससे उस जल की चमक के अनसार उनका शरीर चमकने लगता है । इस कारण वह वीतशोक नामक नगर पथिकों को ऐसा दीखता था कि मानों इन्द्रधनुष सूर्य को घेर कर सुभोभित हो रहा हो । चारों ओर खाई से घिरे होने के कारण वीतशोक नामक नगर अत्यन्त शोभायमान दीखता था ॥२६॥
किडकिडतडंगळ सूळ 'दु केडुतोमड़िये । मडंगन् मोयिविन् वानवकुं मोदु पोगना मविळ, ॥ तरंगळ मरतल तरयु सूळ मान वर्। कंदिडा वगई निड़ नागन् सन्नी काटुमे ॥३०॥
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