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मेरु मंदर पुराण
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तत्पश्चात् वह धरणेंद्र उन दोनों कुमारों को अपने विमान में बिठा कर विजयाद्ध पर्वत पर ले गया ।।२०१॥
मलमलि वडगिर् शेडि येरुबदु करसनाग । विनमि नाट्टि पूरम् कनक पल्लवईदा । ननय्यले तेरकिर् सोडि यैवदु नमिक्कु मींदु ।
पुरणेवरु शक्कवाळ् मिरदन पुरते वैत्तान् ॥२०२॥ अर्थ-विजयाद्ध पर्वत पर उत्तर श्रेणी में रहने वाले सात नगरों के राजाओं पर नमि कुमार को अधिपति बनाया और विनमिकुमार को कनकपुर नगर में लेजाकर दक्षिण · श्रेणी के पचास नगरों का अधिपति बनाया। इस प्रकार दोनों को चक्रवर्ती बना दिया ।२०२।
विजेगळंजुनूरु शिरयन वेळुन्नर। तंजमा ववर्गटकोंदु तानवर तम्मै येल्ला ।। मंजिनीरिवर् गळानै केटु वदिरैजिरागिर् ।
जिनीरेंड, कोन्मिन् मलैयुमोर् तुगळदाम् ॥२०॥ अर्थ-कुमारों ने चक्रवर्ती बनने के बाद उन दोनों को धरणेंद्र ने ५०० महाद्यिा और ७०० क्षुल्लक विद्या देकर पर्वत पर रहने वाले सभी विद्याधर राजाओं से कहा कि तुम्हारे नगर के ये दोनों कुमार अधिपति हैं। ये दोनों जैसा कहेंगे उसी प्रकार तुमको इनकी प्राज्ञा में रहना पडेगा । यदि तुम लोगों ने इनकी आज्ञा का उल्लंघन किया तो तुम्हारी संपत्ति आदि छीन ली जायेगी ।।२०३।।
एंड वर्करसु नाटि इलंगु पन्नगर्क नादन् । सेंड तन् भवनम् पुकान सेळुमरिण मुडिविव् वीश । वंड तोटिंड, कार मरुळु मिर्पेट, वंद।
मिद्रिगळ् तंदनंद विननि तन कुलत्ति नुळ्ळान् ॥२०४॥ अर्थ-इस प्रकार उन विद्याधरों को कहकर दोनों राजकुमारों को चक्रवर्ती पद पर राज्याभिषेक करके वह धरणेंद्र अपने स्थान को चला गया और जाते समय यह और कह गया कि यहां की परंपरा से चले आये विद्याधरों में यह ही विद्युद्दष्ट्र विद्याधर है ।।२०४।।
नंजुडै मरतेयेनुनट्ट. नीरट्रियाकि । बिजिय ववनैत्राये वीट्ट द लरिदिया ॥ मेंवदि उलगिनिड़ दरिदिये नीविर् नाट। विजयर् कुलत्त मेनिबेगुळ् वदन् विडुगर्नेडान् ॥२०॥
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