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मेह मंदर पुराण
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नट मूंड, नवसोंड, माय ।
नोडुद्र मुबलदाम शगंदि निड़वे ॥११३६॥ अर्थ-इस प्रकार पहली जगली के मंडप के चारों प्रोर वरण्डक ध्वजाए हैं । ये ध्वजाए संख्या में सत्तर हजार तीन सौ इक्यासी हैं । ११३६।।
येळवत्तु नान्गै यायिरत्तु मारिय। . बुळकुट विरंडु नूद, येलुवत्तबुदु ।। मिलुत्तोरायिर तैबत्तारु माम् ।
पलुवट्र शगदिमेल मेर्पदाग यामै ॥११३७॥ अर्थ-दूसरी जगती के मंडप के ऊपर चौहत्तर हजार दो सौ उन्नासी वरण्डक ध्वजाए हैं। तीसरी जगती के मंडप पर सतत्तर हजार छप्पन ध्वजाए हैं ।।११३७।।
इरंडु नट्रेलुव तेला इरत्तोड । किरंड तोळ्ळाइर तिरुवदा मुदर ॥ किरंद नद्ररुवत्ताइर तोडु।
निरंद नानूरु कन्नडु नवु निडवे ॥११३८॥ अर्थ-वहां रहने वाले घरों के ऊपर दो लाख सतत्तर हजार अस्सी ध्वजाए हैं। कुछ दूसरे मकानों पर दो लाख छियासठ हजार चार सौ ध्वजाए हैं ॥११३८।।
सुन्ने एटेट्टु नांगैदिरंडिडे । सोन्ने तानत्तिन् मूंडावदिन ट्रोगै ॥ इन्न कूडत्त कोटगं तनमिश
सोन सोन्न वै येंगम् किरट्टि ये ।।११३६।। अर्थ-तीसरी जगती मंडप पर दो लाख चौपन हजार आठ सौ अस्सी ध्वजाए हैं। इस प्रकार वहां की ध्वजारों का वर्णन किया गया है ।। ११३६।।
पट्टि केतलत्तिन् मेर् पैंबोर कोइलि । नेट्ट लातिश मुगत्तिरुंद मंडव ॥ तुट्टोलि तिरंड कावद मोंड्रो कम। विट्टोलि तुळुव वेन् शुडरि निडवे ॥११४०।। मकर वाय मेडपत्तरेय वायनार । शिगर बाय जिनकरं शिवन शै मूर्तिगळ ॥
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