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संकल
मेरु मंदर पुराण
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अर्थ- सौधर्म इन्द्र प्रादि देवों के द्वारा किए हुए उनके ऐश्वर्य का वर्णन करने वाले देव तथा तीन लोक में रहने वाले प्रकृत्रिम चैत्यालयों के जो देव हैं वे ही भगवान की पूजा करते हैं । दूसरे अन्य कोई नहीं कर सकते ।। १२८६ ॥
शक्करन् शमर नोशन् वैर नान् देव राजर् 1 तोक्क वानवर नांदु भागमाय् तोगुत्तु कोंडु || मिक्क बतिक्कै मेवि विरगुळि शिरप्पयर्ंद । पक्कत्तेन्नाळु शेवर पदिने नाळिगे योर्पाले ॥। १२६०॥
अर्थ- सौधर्म इन्द्र, चमरेंद्र, श्रसुरेंद्र, ईशान कल्प के देव, वैरोचन नामके असुर कुमार देव तथा देवों के राजा सभी मिलकर भगवान की पूजा करते हैं । उस नंदीश्वर द्वीप के चारों दिशाओंों के जिनालयों में शुक्लपक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णमासी तक एक दिन में एक-एक पहर तक प्रदक्षिणारूप से करते रहते हैं । अर्थात् रात ब दिन बराबर पूजा करते रहते हैं । कोई भेद भाव नहीं है ।। १२६०॥
प्रक्कनतगत्तु पजं मंदर तालयत्तुट् । पुक्कु चारगरिन् मिक्का रिपोट्रि शेपर | तिक्कट्टि लिरै वन् पादं शेरिंदुलगांति देवर् । तक्क वच्चिर पेयेल्लाम् तान् शिदित्ति रुप्प रंड्र ।। १२६१ ।।
अर्थ- कार्तिक, फाल्गुण व आषाढ इन तीन माह के शुक्लपक्ष में पूजन करके जम्बूद्वीप का एक मेरू, धातकी खंड के दो मेरू तथा पुष्करार्द्ध द्वीप के दो मेरू इस प्रकार पांच मेरू के अकृत्रिम चैत्यालयों में रहने वाली प्रतिमाओं के सम्यक्त्व तथा चारण ऋद्धि को प्राप्त हुए मुनिगरण दर्शन करते हैं । ब्रह्मलोक के अंत में रहने वाले ब्रह्मऋषि लौकांतिक देव भगवान के चरण कमलों का ध्यान वहीं से करते हैं ।। १२६१।।
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नान विदिमुदल विदिगळरदु मंजनांगत् । तानमबै यदि मंजनागं मवै वांग ||
वानवर कन् मरिणक्कुडत्तु नंदेयनुं धावि ।
पानंदन मुगंद मुगं पदुम मलर सूटि ।। १२६२ ॥
अर्थ - जिनेंद्र भगवान का अभिषेक तथा पूजा करने की विधि को भली भांति जान कर अभिषेक का गंधोदक लेकर नंदा गाम की बावडी के पानी को विधि पूर्वक लेकर छान कर कलश भर कर उस पर लाल कमल रख देते हैं ।। १२६२।।
अंजलिनो डिरैव नाल यत्ते वलंमाय् । वंदवर कनिड्रिडत्तिन् मरिंगक्कदवं तिरप्प |
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