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मेर मंदर पुराण पौष शुक्ला २ रविवार सं० २०२८ वोर निर्वाण सं० २४४८ तदनुसार ता० ११ दिसम्बर सन् १९७१ मध्याह्न काल में पार्श्वनाथ चूलगिरि पर अनुवाद रूप में लिखकर समाप्त किया।
माइरत्तु नानूदिन मेलु निल्यूडान् । पाप पुगळ् येरुक्कळ मंबरर् "पार" ५॥ तवराज राजकुर मुनिवन् टुंद ।
भवरोग मंदिरमाम् पाटु ॥ १४०५ श्लोक रूप में प्रत्यंत पवित्र तपस्या करने वाले मेरू और मंदर इन दोनों का परित्र लिखवाया है ।। इति भद्रं ।
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