________________
r७४ 1
मेरु मंदर पुराण
वत्तवोर पादिइल वंदु नंदिसर । पुक्कवर मै मै तोडंगिन रंड्रे॥१२८५॥
अर्थ----कार्तिक, फाल्गुण व प्राषाढ मास के अंतिम मास में अष्टमी से पूर्णमासी तक नंदोश्वर द्वीप के बावन चैत्यालयों में सब देव मिलकर पूजा प्रारंभ करते हैं ॥१२८५॥
प्रक्कन मिक्क वरंवय राडु नर । पक्क मेळुद वियाल कुळल् पन्नोलि ।। तोक्कु मुरंड वलं बुरि दुंदुभि ।
नक्कन वान मुक्किन मादो ॥१२८६॥ अर्थ-उस नंदीश्वर द्वीप के मंदिरों में जिन बिम्बों की पूजा करते समय देवाङ्गनाए नृत्य करती हैं , और वीणा वाद्य तथा शंख आदि के शब्दों की ध्वनि चारों ओर दूर तक गूंजने लगती है ।।१२८६।।
सल्लरि तन्नुमै भेरि मुळावलि । येल्ले तमक्कि येन वेळंदन ॥ सेल्लिनर तम्मेदिर सोल्लिनर तम्मोलि। योल्लेनु माकडलो शेई नोंडे ॥१२८७॥
अर्थ-झलमरी वाद्य, भेरीवाद्य तथा अनेक प्रकार के वाद्यों की ध्वनि चारों ओर फैल जाती है । परस्पर देवांगना वहां इस प्रकार वर्तालाप करती हैं, उसकी प्रति ध्वनि ऐसी मालुम होती है, मानों समुद्र की तरंग ही उठकर गूंज रही हो ।।१२८७।।
तुंवर नारदर तोक्कुडन मिक्कव । रेगुं मियाळि से वोडोलि तोट्ट नर् ॥ तंगिय किन्नरर् तम्मि दुनंगळे । लंगिय गीत मोडाई नर तामे ॥१२८८॥
अर्थ-तुम्बरुनाद करने वाले देवऋषि वीणा नाद करते हुए पाते हैं, और किन्नर देवियां आकर अपनी सामर्थ्य से वहां संगीत नृत्य गान आदि करती हैं ॥१२८८।।
शक्करन मुददेवर कडाम् शैद । मिक्कशिल्वत्त यावर विळंबुवा ॥ रक्कन मुच्चगत्तुळ्ळव रालयं । तोक्क वेदोडगि शिरप्पोडुमे ॥१२८६॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org