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मेह मंदर पुराण
[ vee करना, दुख देने वाले निंद्य कार्य करना ये सब प्रसातावेदनीय कर्म के बंध के कारण हैं ।
५१३३१॥ उर शैव गुणंगळिडि करुणये युळि ळझेळ । मरुविय मनत्तिनगि यिर्गळिन् वरुत्तमोंबि ।। तुरु नयत्ताल वंदे, तुंबत्तं तुनिय नोरि।
पेरिय विबत्तै याकं सादान् पिनिक्कु मिक्के ॥१३३२।। अर्थ-इस क्रूर परिणाम को त्यागकर समताभाव को धारण कर कारुण्य, प्रशम, अनुकंपादि धर्मानुराग से युक्त परिणाम को धारण करना, दुखी जीवों पर अपनी शक्ति अनुसार कृपा कर दुख दूर करना, मिथ्यामार्ग से पाने वाले दुखों को तथा उपसर्गों को रोकना । इससे अनंत सुख को देने वाले सातावदेनीय कर्म का बंध होता है। घातिया कर्मों को नाश किये हुये अहंत भगवान तथा उ.के प्रालय को जिन धर्म का मार्ग का यथाथ स्वरूप समझ कर धर्म का ऐसा उपदेश देना जो सभी भव्य जीव समझ सकें, यह सभी सातावेदनीय कम के बंध के कारण हैं। इसी प्रकार इसके विपरीत कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र मिथ्वात्वी साधु को नमस्कार करना , षट् अनायतनों को मानना ये सभी दर्शन मोहनीय के बंध के कारण हैं।
॥१३३२॥ प्ररुग नालयंग नूलग ळर नेरि तमक्कु माराय । पोळ कडेरादु माराम् पोरु ळुर तरुगनादि । पेरुमय पोरादु कुटम् पिरंगि नार तमै इरै जल ।
मरु मिच्चत्त मट्टि नेरिमय कुरुक्कु मिक्के ॥१३३३॥ प्रर्थ-सम्यक् चरित्र को नाश करना, त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करना, दुष्ट परिणामों से राग द्वेषादि परिणामों को उत्पन्न करना, इनसे चारित्र को नाश करने बाले चारित्र मोहनीय कर्म का बंध होता है ॥१३३३।।
पोळकत्तं येळित्तल कायत्तूवन निर्प तम्मै । येळित्तिडल् किळहर सेर्द नोकुद लादि यालु ॥ वळुक्किला चेट मार्व मयक्कमा मै यंदालु।
मोळुक्कत यळिक्कुं मोग मुडन वंदु पिगिक्कु मिस्के। १३३४॥ अर्थ-इस प्रकार अनादि काल से मोह को उत्पन्न करने वाले माठ प्रकार के कर्मों से तथा परिग्रह वांछा से जीव का वध करना, चोरी करना, असंयम में आनंद मानना मादि से प्रशुभ लेश्या परिणाम होता है। इन परिणामों से बहु प्रारम्भ परिग्रह को उत्पन्न करने से तीव्र नरकायु का कर्म बंध होता है ।।१३३४॥
मरुळ शैयुं बिनै मुन्नेट्टिन् माटोणा उदयत्तालुं । पोळ कोले कळवु पोय्यिर पुरिदेळु मुवगै पालुं ।
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