Book Title: Meru Mandar Purana
Author(s): Vamanacharya, Deshbhushan Aacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 563
________________ ५०६ मेह मंदर पुराण मर्ष-ऋमवर्ती जानने वाले इन्द्रिय ज्ञान के नाश होते ही सम्पूर्ण पदार्थों को एक साब जाननेवाले केवलज्ञान रूपी सूर्य के प्रकाश से युक्तं, जन्म-मरण रूपी संसार को नाश करने वाले मापके पवित्र चरस कमलों को शरण हम ग्रहण करते हैं । अर्थात् भव २ में हमें मापके चरण कमलों को शरण मिले ।।१३९३॥ कुलिगमो डिमलु कुविधुले पुणरु नर । ततं मे ये नयुबन तेवनेरि बरवन । । उसगिर्न योर नोडि यगवै नळगुव । मलेविल निलय जुम्मल मलर यडेंदु ॥१३६४॥ पर्ष-स्त्री के रूप को देखते हो कामीपुरुष काम विकार को प्राप्त होते हैं, ऐसे सोग भी प्रापके निग्रंथ वीतराग स्वरूप को देखकर अपने हृदय में मोक्ष जाने की इच्छा करके तदनुकूल चारित्र प्राप्त करने की भावना उत्पन्न करते हैं। ऐसे मापके पवित्र चरण कमल हमारी रक्षा करें ।।१३६४। उयर वर उयरिय दुलगिनी नुईर् गळिन् । मयर वर बरमुं बरुळ व बमरर् गळ ॥ मयर् वर मरिण मुनि यनिवन पनिवार । तुयर् वर वेरियु नुन तुने यडि तुळंदु ॥१३६॥ भर्व-इस संसार में रहने वाले भव्य जीवों के दुखों को नाश करने वाले, धर्मोपदेश को देने वाले, ऐसे पवित्र चरण कमलों की शरण में रहने वाले. पूजा स्तोत्र पढने वालों को मापके चरण कमल हमेशा रक्षा करें ॥१३॥ इनबन तुदियो नो रिमयव रिर वर । मनमलि युवगैइन वळिपडु मुरैनाळ ॥ विनवळि यामुम्मै योगु वियोग से। कनमलि यूनिल योगिगळानार् ॥१३९६॥ अर्थ-इस प्रकार चतुर्णिकाय देवों ने स्तोत्र आदि पढकर दोनों मेरू और मंदर कवली भगवान को नमस्कार किया और जाते समय तुरंत ही उनने प्रयोगकेवली गुणस्थान को प्राप्त कर लिया। अर्थात् शेष घातिया कर्मों को नाश कर मुक्त हो गये ॥१३६६॥ माइ दिनो वतु वेविने । माय वेळंदु नत्तुल गुच्चियै ॥ मेईनर विनवर मन्नवर, मेनिकट । काय शिरप्पोहु वंदन रंगे ॥१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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