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मेर मंदर पुराण
अर्थ-उस बावडी के मध्य में रहने वाले दधिमुख पर्वत की ऊंचाई व चौडाई दस हजार योजन है। उन बावडियों के चारों दिशाओं में चार वन हैं। जिनके अशोक वन, सप्तच्छदवन, चंपकवन पोर आम्रवन ये नाम हैं ।।१२६०॥
वनत्तिड पुरंबडि वावि कोनत्तिन् । मनत्तिनुक्किरदि शैमलैंग नित ।। तनक्कुयर् वगल माइरंग योजने । यनप्पल विडंगळालिरवि शेग्युमे ॥१२६१।।
अर्थ-उन चारों बनों के बाहरी दोनों कोनों में रतिकर नामक दो पर्वत हैं । उन रतिकर पर्वतों का उत्सेध तथा चौडाई एक हजार योजन है। ये देखने में प्रत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं ।।१२६१।।
मल नल मनि पोनिन मयम वागिय । पलवडि वुडयन परमन कोइल्ग । निलविय मगुडमा इलंगुम पारिलुस ।
मलतुं माइरं पुगंग लाळंववे ॥१२६२।। अर्थ-उस नंदीश्वर द्वीप में रहने वाले, अजनगिरि, दधिमुख और रतिकर नाम के पर्वतों के कार सोने तया रस्नों के अहंत भगवान के चैत्यालय हैं। वे अत्यंत प्रकाशमान मुकुट के समान प्रकाशित हैं। वे नोचे से कार तक एक हजार विस्तार वाले हैं ।।१२६२।।
वनंगळु तउंगळु मलइन मामरिण । तलंगन मे निड्रन तमनि येत्ति यन् ॥ दिलंगु तोरण मुडे वेदि शूळं तु नल।
ललगंला दर मरिण यालियंडवे ॥१२६३॥ अर्थ-नंदीश्वर द्वीप में रहने वाले वन, तडाग, बावडी, पर्वत रत्नों से परिपूर्ण हैं। वहाँ के मालय (भवन) स्वर्ण से युक्त हैं। उनके चारों ओर वेदियां हैं। उन वेदियों में पुष्प हार लटके हुए हैं ।।१२६३।।
मंजन बंजन मालयु नान्गुळ । वैजिडा विमुगत्ती रट्टागुमे ॥ पंजि पोलिरदि करत्तन्नानगुळ ।
मंजिला तन नल वामन कोयिले ॥१२६४।। अर्थ-काले बादलों के समान अजनगिरि पर्वत चार हैं । वषिमुख नाम के सोलह
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