________________
मेरा मंदर पुरारण
[ ४४३
fafter मंकन मूंड्राय् विर्शिय वोरि यन् ट्रन् कोइर । चक्कर पोडं काद मिरंडगंड्र यर्बु कोमान् ॥ ट्रक्कदन नळवदाइ पोन्मरिण मय मागि नाना । पक्कमु मेर लागं पडि पदि नारदामें ।। ११६६ ॥
अर्थ - अनन्त सुखोत्सव, अनंत लघुत्व व अनन्त विचित्र ऐसे गुणों को प्राप्त हुए प्रनन्त वीर्य के धारक प्रहंत भगवान के रहने के स्थान में धर्म चक्र पीठिका है। उस पीठिका का विस्तार दो कोस का है । और जितना भगवान का प्राकार है उतना ही इस पीठिका का आकार है ।।११६६ ॥
उरं शंब पोड तुंबर वलं क्रोन् मंडल मोर, कोस । तरं नल वरंड कत्त तगत्तळव देयाय् ॥ विरं मलर् मारि मेला मुगत्तवाय् विळंद पोदिन् । टूरयिन वगत्तु नान्गु चदुभुग सूत मामे ।। ११७० ॥
अर्थ - श्रहंत भगवान के विराजने के स्थान पर जहां बलिपीठ है वह एक कोम का है। वहां वरण्डक नाम की ध्वजाए महान सुन्दर है। वहां देवों द्वारा पुष्प वृष्टि के स्थान में चारों दिशाओंों में चार मा खडे किये हैं ।। ११७० ।।
Jain Education International
चक्करं चावपोल तनुविले युमिळ चेनि । मिक्कमा मनिसे यारं विळंगु माइरत्तदागि || दिक्कुलास पोळ्दु काद नान्गदाय् शेरिदिरुदात् । विर्कन् मूंड्राय रख्पेराळि तान् विळंगु नि ।। ११७१ ।।
अर्थ- देवेंद्र के धनुष के समान चतुर्मुख ऐसे भूतों के शरोर अत्यन्त चमकदार हैं। उनके मस्तक को रत्नों से सजाया गया है । वह सजा हुआ मस्तक तथा किरीट चमकता रहता है । उसका प्रकाश चार कोस तक पड़ता है। समवसरण का जब चलना बन्द हो जाता है तब तीन कोस तक प्रकाश पडता है ।। ११७१ ।।
S
मुन्नं पोडत्तिर् पादं कुरेंद कंड्र यंद बारे । येन मइलु मिल्ला वोक्कोडि पोडं तन्मेर ॥ सोनवा रुयरंदि तेंदु कोशमाम् तलत्तिन् मोदु ।
मन्त्रिय गदं कुडियिन मंडपमं कादमामे ।। ११७२ ॥
अर्थ - पहले कहे हुए प्रथम बलिपीठ की एक कोस की चौडाई है। उतना ही उत्सेध है । । वहां की लगी हुई ध्वजाओं में हंस, मयूर आदि पक्षियों के चिन्ह अंकित है। यह ध्वजाए
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org