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मेरु मंदर पुराण
[ ३४ चिनिदइन् पुरत्त विट्टार खिळं कुमर नाय ।
बानग मामुनिवन पुक्का नन्नगर शरिगें केंद्रे ॥४॥ अर्थ-पंचेंद्रियः विषया सुख से वैराग्या प्राप्त करके ये दोनों मुनि जहां स्त्री, पुरुष, पशु प्रादि न थो. वाहां नगर के समीप एक उद्यान में जाकर विराजे। वहां ऋद्धि को प्राप्त हुए प्रीतिकर मनिराज ने चर्या के लिये जाते समय ऐसा नियम लिया था कि मैं पाहार उनके हाथ से लंगा, जो व्रती हो, कुल जाति से शुद्ध हो, सम्यकदृष्टि श्रावक हो, भगवान जिनेंद्र के प्रति पूरा. श्रद्धानी हो, नवधाभक्ति सहित. पुण्यपुरुष हो, ऐसे पाक्क के हाथ से माहार लूमा ८४६॥
कादिरिडिमन्निर कण्णुमत्तळ नोकि । माट्रिन फेस्यिं नूछ काळ् बग्य पिरि नरप्पदे पो।। पेट्र नान् मीनोडेंगु पिर मन विखंदोई।
मादिन्. वेन्. तुमर तोर मांद्वान् पोल पुस्कान् ॥५०॥ अर्थ-इसा प्रकार निथमा लेकार माहार के लिये जातोसमय हवा बड़े जोर से चला रही थीं। उस वायु के वेग को देखते हुए कोई जीव जन्तु मेरे पांव के नीचे न आ जाये व ईर्या समिति पूर्वक एक पैर छोडकर जिस प्रकार हाथो मंद २ गतिः से जाता है या कोई तीक्ष्ण तलवार की धार पर चलता हों, उसीके समान वे मुनि अत्यन्त धीरे २ सावधानी से आहार के लिए जा रहें.थे। वे किस प्रकार जा रहे थे.? प्राचार्य कहते हैं कि इस प्रकार वह मुनिराज उस रास्ते में श्रावकों के घर देखते २ चले जा रहे थे जैसे व्याधिग्रस्त मनुष्य दवा लेने के लिये राजवैद्य का घर तलाश कर रहा हो, उसी प्रकार उच्च वंश, नवधा भक्ति महित सम्यकहष्टि आहार देने वाले को ढूंढ रहे थे। यह आहार देना औषधि के समान है। यदि कोई सम्यक्दृष्टि धर्मात्मा व्रती कोई प्राहार दें देवे तो.मैं उसी श्रावक के घर माहार लूंगा। ऐसा विचार करते २. श्रावका के घर के बाहर से जा रहे थे ।।५।।
काइ कडिग बुध्दिर्शने तन्नमत्तै शारं। माय मिरवत्ति नान बंदिर कोळ्ळ मद ।।
यमा तिरंड तोळाळ विमिय दानं शेयर ।
केयु नकुलत्तुः तोंडकेदु वे निरंच बेंद्राळ ॥५१॥ अर्थ-इस प्रकार प्रीतिकर मुनिराजनेगी २ में चर्या के लिये जाते समय देखा कि कहा एक घर बुद्धिसेना नामाकी वेश्या'का'था। उसके घर के सामने से जाते समय उसने उस मुनि को देखकर उनके सामने हाथ फैलाकर उनकों रोक लिया और वह वेश्या प्रार्थना करने लगी कि हे प्रभु! मुनिःमादिः सत्पापों को दान देने के लिये हमको कोनसा माचरण व्रत धारणा करना चाहिये ।।८५१॥ .
तन्नः निर्दित्तल तक्कोर पळिच्चुबल या बोगड़ि। इन्नुभिर करुळे बिल्पुलै सुतेन कळ्ळ्नि मोहा।।
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