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॥ बारहवां अधिकार ॥
* भगवान का बिहार घातिय कडिंदु वेंदन केवल शल्व नानान् । वेदिय नमच्चन् विजे वेद नाय वियंदु पोनान् ॥ पोदनी कुळलि नाळू पुदल वन देव राणा ।
यादिनी इवर्गळ शैग यंडिडि लियंब लुटेन ॥१०११॥ अर्थ-सिंहसेन राजा ने अन्तिम भव में संजयंत मुनि होकर घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान को प्राप्त किया, और अघातिया कर्मों का नाश करके मोक्ष में चले गये । शिवभूति मंत्री दुष्ट विद्यावर केवलज्ञान की पूजा को देखकर पाश्चर्य चकित होकर अपने विद्याधरों में गया। रामदत्ता देवी अगले भव में भुवनेंद्र कल्प में प्रादित्य देव हो गया । राजा सिंहसेन का छोटा पुत्र भवन .लोक में धरणेंद्र होकर जन्म लिया । अब प्रागे चलकर इन दोनों का विवेचन करूगा, सुनो ! ॥१०११॥
वेदिग वेदंडत्तिन् विल्लुनान् वीकिटे पो। लोद नीरुडुत्त मन्मेलुत्तर मदुरे येन्यूँ ॥ पोदुडु तळिर कन् मिडि पोरि बंडुम तेनुं पाड।
तादोडु मदुकळ वोयुं तन् पनै सोले दुंडे ॥१.१२॥ अर्थ-महा लवरण समुद्र से घेरा हवा इस भरत क्षेत्र में अत्यन्त सुन्दर नाना प्रकार के वन उपवनों से सुशोभित उत्तर मथुरा नाम का नगर है ।।१०१२।।
पगर किड कोडाद बोन् माळिगे पाय नल्ला । रगिर पुगे यगत्तु निद्रा रणिवर मदन चूळं ६ ॥ मुगिर कोडि निम्नु पोंड, तोंड.वार कुळा मुळेग । तुगि रि योड़ मंजं तोडंगिय नडंग ळोवा ॥१०१३॥
अर्थ-उस नगर में लगी हुई ध्वजा हवा से उड रही थी। उस ध्वजा से बंधे हुए घंटों (टोकरों) के शब्द मेघ की गर्जना के समान मालूम होते थे। उन शब्दों को सुनकर मयूर अत्यन्त प्रानन्द से घूमते थे। और उस नगर के प्रत्यन्त उन्नतशोल गोपुर थे। उस गोपुर के ऊपर प्राकाश में उत्पन्न होने वाले बिजली के ममान प्राभरण करने वाले वहां की रहने वाली स्त्रियों के रत्नों के प्राभूषण प्रादि चमकते थे ॥१०१३।।
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