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मरु मंदर पुराप
कामने कौव्वे सेवान् करिगळे निगळम् पैव । ताममे मेलियं वन्नं शंकरं शिपि यकें ॥ शेममार शिरं पुनर्के तोतोलिन् मरैय वर्के । वाममें कलेनारे वशीय मन्नगर तुळ्ळे ॥ १०१४ ॥
अर्थ- -उस नगर में स्त्री पुरुष को कोई दुख नहीं देता था । केवल दुख देने वाला एक मन्मथ ही था, दूसरा कोई नहीं था । और लोहे की जंजीर ही उनके लिये बंधन का कारण थी और कोई नहीं था । धूप के ताप के अतिरिक्त और कोई शुष्क करने वाला उनको नहीं था। पानी को रोकने के लिये एक तालाब था । अग्नि से ब्राह्मरण लोग होमादि के लिये उस अग्नि का उपयोग करते थे और कोई उपयोग में नहीं लाता था । पुरुष को वश में करने के लिये एक स्त्री ही थी अन्य कोई नहीं था ।। १०१४ ||
सिनंदले लिङ्ग वेंदर् तिन पुयम् शिदेत वीरर् । तनंद वोरिय नॅबाना मन्नगर् किरंव नल्लार् ॥ मनंदोर मिरुंद कामन् वन्मेयान् मारि योप्पा |
ननंदले युलगि नुळ्ळ नवें यलास तीर निड्रान् ॥१०१५।।
अर्थ - इस प्रकार अत्यन्त सुन्दर उत्तर मथुरा नाम के नगर में शत्रुदल का नाश करने वाला पराक्रमी अनंतवीर्य नाम का राजा था। वह राजा मन्मथ के समान महान सुन्दर था और मेघ वृष्टि के समान सारी प्रजाजनों की इच्छा पूरी करता था और याचकों को इच्छित दान देता था । उनकी राजधानी तथा देशों में कोई दुखी नहीं था ।। १०१५ ।।
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पारि नावतं. शारंद पवळत्तिन् कोळंदै योपान् । मेरुमालिनी सेबां लौवंदन् मादेविमिक्काऴ् ॥ वारिवा यमिदं मन्ना ळमिर्द, मामवि येवाळाम् । कारोंड्रो डिरंडु मिन पोर् कालर् कळ वि निड्रार् ॥१०१६॥ .
अर्थ-उस राजा को पारिजात वृक्ष में जैसे मरिण को पिरोया जाता है, लता पर
चढाया जाता है उसी प्रकार अत्यन्त सुन्दर उस राजा के मेरु मालिनी और अमृतमती नाम की दो पटरानियाँ थी, इन दोनों में मेरु मालिनी बढी पटरानी थी। प्रमृतमती छोटी पटरानी थी । । १०१६।।
मगरवे रिरंडु तोळा वारि युट्टिरिव दे पोमार् ।
शिगर माल याने यान विमार पुयंग लाग ॥ निगरिला विव वेळळ कडलिडे नोंदु नाळ ळ,
पुगरिलार् वारिणन् बंदिव्विद वकुं पुबल्व रानार् ॥ १०१७।।
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