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मेरु मंदर पुराण
मुंद परप्पै योर्वा मुन् पिन्नेळ, भवत्तं कान्वार् । शिवं शैद वç पार्क तेळिक्क नोयायुं तीरुं ॥। १०८६ ॥
अर्थ - उस नंदीश्वर द्वीप की भूमि में रहने वाली बावडियों के नाम अर्थात् पूर्व दिशा में रहने वाली बावडी का नाम नंदा, दक्षिण दिशा की बावडो का नाम भद्रा, पच्छिम दिशा की बावडी का नाम जयंता और उत्तर दिशा में रहने वाली बावडी का नाम पूर्णा है ।
॥१०८६॥
वास निड्रं राव शोले भदिळिन् दगत्तु मांड | प्रोचनं यगंडू देनु मुळगेळा महंगिनाळु || मासं पोग ळगंडू तोडू. मरुमरंग निळत्त दागि । मासिला मणिड्र नायमरंगळा शेरिददेंगुम् ।। १०८७॥
अर्थ -- पूर्व दिशा की बावडी के जल को मनुष्य गंधोदक के रूप में अपने मस्तक पर डालते हैं, जिससे उसके श्रागे के और पीछे के दो भवों का ज्ञान हो जाता है । दक्षिण दिशा की बावडी के जल को देखने से आगे और पीछे के भवों को जान लेते हैं। पश्चिम दिशा की बावडी के जल को देखने से अपने मन में जो इच्छा होती है वह पूर्ण हो जाती है । तथा उत्तर दिशा की पूर्णा नाम की बावडी के जल को देखकर मस्तक पर डाल लेने से सम्पूर्ण व्याधियों का नाश हो जाता है ।। १०८७
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पळ निरं पइड्र फळंगकं शेरिदं शागं । निळेतळंदोशिय काना निरैय वन् शिरंग कोंडि ॥ मळू निरेंविरुदं मट्ट वांगिनार 'ट्रांगपारा | मिळयना मिळाद वर्कु विरुंदेऴुदुडं तेनं ।। १०८८ ।।
अर्थ - उस कल्याणतर गोपुर में रहने वाले कल्पवृक्ष नाम की भूमि का चार कोस का विस्तार है । वह भूमि इतनी विशाल है कि तीन लोक के जीव श्राकर बैठ जाँय तो सब का समावेश हो जाता है । वह भूमि बैठने में कम नहीं पडती है। वहां रहने वाले कल्पवृक्षों की रत्नों से सजावट की गई है। वह वृक्ष अनेक प्रकार के फल पुष्प आदि से भरे हुए हैं । फल व पुष्पों से उन वृक्षों की शाखाएं झुकी हुई हैं । उन फलों की सुगंध के अधीन होकर भ्रमर तथा अन्य पक्षी मधुर रस का आस्वादन लेते हुए उन्हीं में रहते हैं । वे पक्षी उन फूलों के रसों को खींच रहे हैं इसलिये कि उस वृक्ष का बोझ कम हो जावे । जैसे २ उन शाखाओं में से वे पक्षी मधुर रस को खींचते हैं वैसे २ फूल व शाखाएं मुरझा सी जाती हैं। वे शाखाएं झुकी हुई हवा से इस प्रकार हिलतो हैं। मानों लोगों को बुलार कर दान दे रही हों । १०८८ ।।
शिरप्पोडिगडेंट देवर् शेरि पोकि ळवनंचेदंर् ।
र कते मरप्परेड्रां सोब्रुथ विनि येन्नंड्रिप ||
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