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मेह मंदर पुराण
नाळु नाळु नंल्लिवम् पयप्पन ।
शूळि यान यै शूळ पिडि पोळ् वन् ॥११०८।। अर्थ-उस जयाश्रय नाम के मंडप में अनेक प्रकार के महल कई मंजिल वाले हैं। उसको देखने से ऐसा मालूम होता जैसे एक हाथी के चारों ओर कई २ छोटे २ हाथी हों। इस प्रकार कई मंजिल का वह मंडप था। उस ऊची मंजिल में रहने वाले जीवों को अत्यन्त मानन्द उत्पन्न होता था ।।११०८।।
शिप्पि शैग मुडियन् शैविन ।। तुप्पुरुवं युरप्पन नन्नेरि ॥ तप्पिनार् तडुमा विरिप्पन् । विप्पडिय विट्रि मेनिप्पळ ॥११०६।।
अर्थ-उस मंडप में रहने वाले महल की मंजिल पर पूर्वजन्म में उपार्जन किया हुआ तथा संचय किया हुपा पाप और पुण्य का लेखा जोखा उसमें लिखा हुआ था और महाव्रत को धारण करके भ्रष्ट होना तथा मरण को प्राप्त हुए दुख को भोगना आदि अनेक विषय वहां लिखे हुए थे।।११०६।।
मंदिर येनि, पुर शिडिग । इन्दिरत्तु वस मिड निड्न शंदिरत्तिरळिन पुळगत्तिड ।
वंदु नित्तिळ माळ ग नाइवे ॥१११०॥ अर्थ-उस जयाभव मंडप के अंदर स्वर्णमयी एक पीठ है । उस पीठ के मध्य भाग में इन्द्र ध्वज नाम की एक पताका है। वह ध्वजस्तंभ चंद्रमा की किरण के समान प्रकाशमान हो रहा था। उस स्तंभ के शिखरों को मोती आदि अनेक प्रकार के हारों से सुशोभित किया गया था।॥१११०॥
सुंदिरतिरन् मामरिण सूडिन । मिब मिन् परप्पिन मिळिरतु विळ बीसुव ।। पेन् लुगिर् कोडि काळ पोर पार्पिन ।। मंदरत्ति याडुव पोळ मे ॥११११॥
अर्थ-उस ध्वजा स्तंभ को अत्यंत सुन्दर दर्पण से निर्माण किया हुमा शीशा के समान श्रेष्ठ रत्नों से जड दिया गया था। वे रत्न बिजली के समान चमकते थे। उस स्तंभ पर लगी हुई ध्वजाए जब हवा चलने पर लहराती हैं, उस समय ऐसा मालूम होता है कि जैसे हंस पक्षी अपने परों को फडफडाता है ।।११११।।
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