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मेह मंबर पुराण खून सुर्व तुरुदि योरा रुळ ळ तिर् कोडिय रागि। कुन शिल कनयोडेरि कोले तोळिल पुरिंदु दार् ॥ तान शेलविट्ट नाय पोर् करिय नाय कवर जि।
वान शिल इलव मेदि बंदु वीळ दरद, गिट्टार् ॥६४६॥ मर्च-अहिंसा व्रत को नाश करके अपने हाथ में लिये शस्त्र बाण, धनुष के द्वारा जीवों की हिंसा तथा बात करने से, उस हिंसा में संतोष मा खाने से, खाने की अनुमति देने से,मांस आदि की बिक्री करने इत्यादि पापों से यह जीव नरक में उत्पन्न होते हैं । और वह नारकी जीव कुत्ते का रूप धारण कर नारकी जीवों को काटता है। कांटेदार वृक्ष पर चढ़ता है । और वहां कांटे चुभने पर वह नीचे प्राकर गिर जाता है।
॥४६॥ मन यरम मरंदु मंडिनिडवान् कुडिकनयत् । धनं बलि यनिन् वांगि शालवं तळर्व शेवार ॥ नुन मुरिविलाद मुळि ळन् मद्दिग पुडयि मुंगि ।
निन बरु तुयरं तुयित्तु नेडिदुयिर् पार्ग ळ या ॥६५०॥ मर्थ हे नारकी सुनो ! अहंत भगवान के द्वारा कहे हुए धर्म को न ग्रहण कर अधर्म को स्वीकार कर दूसरे की संपत्ति को बल द्वारा छीन लेना वाला जीव इस पाप कार्य के कारण नरक में जन्मता है। कांटे से युक्त डंडों से, लोहे के घन से उस नारकी जीव के सिर में मारते हैं । उससे नारकी जीव का मस्तक चूर २ हो जाता है और उसको महान दुख होता है ॥ ५ ॥
बलह लुइर् वार्यदन् मारुविल कोंडार् । निलंय गळ वरिनीनं बंदोळ ग निड्रार ॥ विलइन् मुडे कोंडुनलं विनर्गळ कंडाय ।
निलइल पेरुं शोरकुळिर निद्र. रुळल गिहार ॥५१॥ मर्च-जाल को नदी में बिछा कर मछली को पकडकर मारकर उसको बेचकर जो प्राणी अनाज धान मादि खरीदता है उस जीव को वे नारकी जीव शूल स्तंभ का निर्माण कर उस पर बिठा देते हैं। ऐसे वह नारकी जीव प्रत्यन्त पूर्वजन्म के पाप के कारण दुख सहता है। पूर्वजन्म में मांस को प्रेम से जो खरीदता है, खाता है, बेचता है उन प्राणियों को वे नारको नरक में महान दुर्गधित खड्ड में डालकर दुख देते हैं ।।९५१।।
इ, युइर् वल्विन इरंद वर् पिरप्पेन । सोल्लिनवर सेवरुक्कि वाइर पंदुइर् वार । कवि योडु पुनरंदु कडे नल्लोळक मेन्वां। रेइल तुयर मंदि युळल गिडार ॥६५२।।
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