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मेर मंदर पुराण
या । उस सिंहचन्द्र मुनि महाराज के साथ बैर भाव धारण करने वाले सत्यघोष नाम के मंत्री ने कई बार नरक में जाकर प्रत्यन्त दुख भोगकर जन्म मरण किया।
उस समय में राग द्वेष परिणति से रहित वह जीव कर्म से मुक्त होकर संसा र बंधन को तोडकर अनन्त सुख को प्राप्त हो गया। इसलिये भवन लोक के अधिपति हे धरणेंद्र ! इस कर्म बंध का कारण एक बैरत्व ही इस जीव का है। और कोई नहीं है। इसलिये आप भली प्रकार से मनन करके विचार करो ऐसा प्रादित्य नाम के देव ने धरणेंद्र से कहा ॥८८६८१00
इति बजायुध मुनि सर्वार्थसिद्धि नाम के विमान में जाने
वाला पाठवां अध्याय पूर्ण हुमा ॥
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