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॥ दशम अधिकार ।।
• नरक में रहने वाले विमोषण को मादित्य देव द्वारा धर्मोपदेश
चक्कर प्रभ तन्पानिर् पदर कावं वैत्तु । चक्कर प्रभ तनपा निड़ वन टन्नै काना॥ मिक्क वेन तुयर मुटे नवन् ट्यर नींग वेन्नि ।
येक्क नत्तवने करियेरवि बन्ने बैंडेन ॥३०॥ मर्थ-उस शर्करा नाम के दूसरे नरक में उत्पन्न हुए नारकी विभीषण को देखकर मन्य नारकी लोग उसको दुख देने लगे। तब उसके दुख को दूर करने के लिए वह लांतव देव वहां जाकर धर्मोपदेश करने लगा कि हे नारकी! सुनो, भापको मालूम है वह नारकी जीव का पहले जन्म में कौन था? सुनो! ॥९३०॥
मदुरै यानाग बेवाइल वाणि मगळाय नीपिन् । सदुर मै बत्तै यानेन पूरचंदिर नानाम् ॥ विदियिमा नोन्नोडु मासुषकं पुक्कु विमं ।
पदियिर, शीदर याने नेन् मगळि सोदरे युमानाय ॥३१॥ अर्थ है नारकी! मैं कई भव पहले मदुरा नाम की ब्राह्मणी स्त्री पर्याय में थी और तुमने मेरी कुक्षी से वारुणी नाम की पुत्री होकर जन्म लिया था। वहां से आयु पूरी करके सिंहसेन राजा की पटरानी रामदत्ता हो गई। उस रामदत्ता देवी के गर्भ से तूने छोढा पुत्र पूर्णचंद्र नाम होकर जन्म लिया। वहां पूर्णतया मेरे साथ अच्छे व्रताचरण का पालन करके शुभ प्राचरणों के फल से महाशुक्र के कल्प में देव पर्याय धारण की । वहां देवगति के सुख भोगकर प्रायु के अवसान पर वहां से चयकर विद्याधरों के लोक में श्रीधरा नाम की राजश्री होकर जन्म लिया। उस श्रीधरा के उदर से पूर्वजन्म के भव भवांतर के संबंध के कारण यशोधरा नाम की लडकी उत्पन्न हुई ॥३१॥
कंदियाय नोन्नोडु काविट्ट कप पुक्कुं। वंदिया निरद माल मग्निन् मेललाग नीयु॥ मंदरतिळि देन मैंद नरवना युवनु मागि ।
शिदे मातवत्तोडोंद्रियेच्छंद शेंड. मोळंडोम ॥३२॥ अर्थ-प्रतदन्तर मापने मेरे साथ प्रायिका दीक्षा लेकर उत्तम तपश्चरण करके उस पुष्य के कम से कापिष्ठ नाम के कल्प में देव पर्याय धारण की। वहां से प्रायु पूर्ण करके मध्य
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