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मेह महर पुराण माम बाती बी। उन बाणों को देखकर बलदेव वीतभय ने अपने हलायुष को लेकर उस भूमि को मासमयी रक्तमयी बना दिया ॥१०॥
कारि कालिर् पोंगी कार पर युज्यपकाना। माद्रवन स पोल पर नुनै पळि दूरि ॥ तोट्र नान तोद.वोरर तोडुपर बिट्ट. तसंस। कार्प यन् कोंडु पोनार कावल रवन काना ॥११॥
पर्थ-वासुदेव का शत्र प्रतिवासुदेव था। उनकी सेना बडाकर ऐसे पीछे भाग गई जैसे पोषी चलती है और मांबी के वेग से समुद्र की लहरें चलती है। उसी प्रकार गिरते पडते बैठते सारी सेना भाग जाती थी। इसको देखकर प्रतिवासुदेव वारणों की वर्षा करने लगा। वासुदेव की सेना घबडा कर पीछे हट गई। इसको देखकर केशव थोडा घबराया ॥११॥
येरियुरु मेन्न शीरि इरंजिल यदु मेल्ले । सुरि युळं शेंगट पेलवाय शीय तोंड बेरि ।। बरि शिले कुरिलय बप्पु मारियप्पमं परतान् ।
बोरविम तुडेंद कोरर शेरिण मेल विनगलोत्तार ।।१२। अर्थ- उस समय बलदेव अपने हाथ में धनुष को धारण करते समय वहां रहने वाला एक देवता उनके पुण्य के प्रभाव से वहां माकर खडा हो गया और उसने सिंह रूप धारण कर लिया और कहने लमा कि मेरे ऊपर तुम चढकर युद्ध भूमि में बाण दृष्टि करो। बह बसदेव उस देवता पर बैठकर चलने लगा। उसे देखकर प्रतिवासुदेव की सेना बैंसे कोई अनि कर्म निर्जरा करके क्षपक श्रेएगो चढ़ता हो उसी प्रकार प्रतिवासुदेव की सेना पीछे हटने लगी ।।६१२.
पारमेर परंव देंगुस परिवि पं करवबंगे । शेर पट्टळर बानि सेवककलन शेल्लनींग ॥ मारेदिरं दवने काना भरिव तनुसेनैवकाना ।
शोरिनन् गरुडनेरिसेंद्र. केशक मेदिदातान् ॥१३॥ पर्थ - युद्ध में मरे हुए लोगों के मांस को देखकर गिद्ध पक्षी प्रकाश में मंडरा रहे है। उस समय वासुदेव प्रति वासुदेव ने अपने मरुड पक्षी पर चटकर युद्ध में प्रवेश कर पन: पुर प्रारम्भ कर दिया ॥१३॥
प्राकम् दुखय मेर् मदि यौळियपिवई पोर। दिशक्किळ गटन मेल केशवन ट्रॉर सिदि।।
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