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मेह मंदर पुराण
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अर्थ-तब वैद्य के वचन सुनकर रत्नायुध ने हाथी के महावत को बुलाकर प्राज्ञा दी कि इस हाथी को मांस रहित पाहार देना। तत्पश्चात् महावत ने परिशुद्ध आहार लाकर हाथी के सामने रखा । उस पाहार को देखते ही तुरन्त हाथी ने खा लिया। ऐसा देखकर राजा ने पाश्चर्यचकित होते हुए अपने मनोहर नाम के उद्यान में वज्रदन्त मुनिराज के पास जाकर नमस्कार करके हाथी के संबंध में प्रश्न किया । ८४२।।
मकर याळ वल्लमैंद नोरुवने कंड्रम । पुगर् मुग कळिट्रिन् मन्नन् मुनिवन वनंगि पिन्न । शिगरमाल यानं कुद्र वरुळुग वेंड, सेप्प । निगरिला पोदि पार पार तरस नी के नयु वेडान् ॥८४३॥
अर्थ-जिस प्रकार वीणा के मधुर शब्द को सुनकर मृग अधीन होता है उसी प्रकार रत्नायुध का हाल हो गया। वह वज्रदन्त मुनिराज को अत्यन्त विनय के साथ नमस्कार करके कहने लगा कि हे प्रभु ! मेरा यह हाथी प्रतिदिन देने वाले मांस मिश्रित पाहार को न खाकर के चुपचाप खडा रहता है और मांस रहित चारे को देने से वह खाने लग जाता है। इसका क्या कारण है ? इस पर महातपस्वी बदन्त मुनिराज प्रपने अवधिज्ञान के द्वारा कहने लगे कि राजन् ! उसका कारण मैं विस्तार से कहता हूं सुनो ! ॥८४३।।
मट्रिद भरदत्तिन् करत्तिन पुरत्तिन् मन्नर् । पेट्रि यार पेरिय मन्नन् पिरदि वद्दिर नेन्वा नाम् ।। वेट्रि वेल घेदन देवि वसुंदरी विलगेल पोलुं । कपिनाळ पुदलवन् प्रीति करने वानोरुव नानान ॥४४॥
अर्थ-हे राजन् ! इस भरत क्षेत्र में हस्तिनापुर नाम का नगर है। उस नगर में प्रीतिचन्द्र नाम का राजा राज्य करता था। उनके शीलवान अति सुन्दरी नाम की पटरानी थी। इन दोनों के प्रति सुलक्षण और चतुर प्रोति कर नाम का पुत्र था ।।८४४।।
चित्तिा मधि बानाम मंदिरि तुनवि तीन सोल । मुत्तनि मुरुधर सव्वाप कबाल याम कमले योप्पाळ् ।। वित्तग पुदल वन ट्रानुं विचित्र मति येवानां । मत्तमाल कळिद, बंदन मगनुक्कन्ड्रोरुव नाना ॥४॥
अर्थ-उस प्रीतिचंद्र राजा के चित्रमति नाम का मंत्री था। उस मंत्री के कोमल शरीर वाली सर्वगुण सम्पन्न कमला नाम की स्त्री थी। इन दोनों के विचित्रमति नाम का पुत्रना। इस त्रीतिकार राजकुमार और विचित्रमति दोगों के घनिष्ट मित्रता थी और पानंद पूर्वक समय को प्रतीत करते थे ॥४॥
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