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तारुण नागि तोडि तलैला ताळतुंडम् ।
कूरेरि कवरंद दुप्पान् कोडुमयार् कनवि योप्पान् ॥८७६॥ अर्थ-उस भील का नाम तारण किरण था। उसकी स्त्री का नाम मंगी या । उन दोनों के प्रतिसार नाम का पुत्र हुमा । उस पुत्र का शरीर अत्यन्त काला था। वह सदैव दुष्ट कार्य किया करता था ।।८७६।।
पावंता नुरुवन् कोंडै वुइरेयुं पडुक वेंडि। चापं शेंज चरंगळेदि तिरिगिड तनेयान् वंदु ॥ कोबंता नादि युळ ळान् कोल इला नंवत्तोड़ें।
वेपंता नुइर् गट काकि विलंगन् मेलेरि नाने ॥८८०॥ मर्थ-वह अतिसार क्रम से बढतेर यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ। वह अत्यन्त क्रूर व दुष्ट स्वभाव का हो गया था। वह निरपराधी प्राणियों की हिंसा किया करता था । अनतानुबंधी क्रोध से युक्त था। ऐसा वह भील हिंसानन्द में आनन्द मानने वाला था। एक दिन हिंसा करते २ वह उसी पहाड पर चला गया ॥८८०॥
वरनिश योगि निड वज्रायुद नै काना। वेरियन विळित्तु बेरत्तेकैद दोर् कोवति याल् ॥ वर ने मुरुक्कु वान् पोर् कनत्तिड बंदु कूडि।
तेरिविलान सैदि तीय शेप्पुबर् करिय बोंड़े ॥८८१॥ अर्थ-उस पर्वत पर जाने के बाद पर्वत की चोटी पर प्रतिमायोग में स्थिर उन वायुध मुनि को देखते ही उस भील ने उनके पास जाकर अत्यंत क्रोध से उपसर्ग करना प्रारंभ कर दिया। उस समय वह भील किस प्रकार मुनिराज पर उपसर्ग कर रहा था-वह कहने में नहीं पाता ॥१॥
कूर नुन पगळि कोंडु शेविहर्ड कुडयुं कुत्तुं । कार् मुगं कोंडु निड, मत्तगत्तडिक्क कैयिर् ॥ कूर् मुळिन् शलागै येंद्र. कुरंगिड कोडियै सुदि ।
मोर विळक कडैयुं पादत्तडिक्क नीइन् मुळं ये निरं ॥८८२॥ अर्थ-उस भील ने अति तीक्ष्ण बाण को अपने हाथ में लेकर उस वज्रायुध मुनि के घुटने में मारना शुरू किया और अपने हाथ में धनुष लेकर उनके सिर पर मार दिया। तीक्ष्ण मायुध को शरीर में घुसाना, कांटेदार लकडी से मारना, शरीर को घसीटना आदि २ अनेक प्रकार के उपसर्ग किए । महान उपसर्ग करने से मुनि के शरीर से इस प्रकार रक्त बहने लगा कि जिस प्रकार पहाड से पानी की धारा बहकर नीचे गिरती है । पुनः उस कांटेदार लकडी को मेकर उन मुनिराज को मारना प्रारम्भ कर दिया।।२।।
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