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-Amar
मेर मंदर पुराण
[ ३४५ होकर उनके माफिक झूठो गवाह देना, उनके अनुकूल मुकदमा जीतना ऐसे जीव तियंच गति में जन्म लेते हैं ।।६।।
इल्लं नविनै तोविनै इन्नुइ । रिल्लये इरंदार्गळ् पिरत्तलु ॥ मिल्लये तुरकत्तोडु वीडनुं ।
सोल्लिनार सुळलं गतियु मिदे ॥८३६॥ __ अर्थ-पुण्य पाप को उत्पन्न करने वाला कोई द्रव्य नहीं है । जीव द्रव्य भी नहीं है। जो जीव है वह शून्य है । मरा हुआ मनुष्य पुनः नहीं जन्म लेता और देवगति मनुष्य गति मोक्ष प्रादि का प्रतिपादन करना मिथ्या है। इस प्रकार नास्तिक लोग झूठा प्रचार करने वाले तियंच गति में जाते हैं ।।८३६।।
प्ररस नीति येळित्तवं मन्ननु । मरस रीति यळित्त वमंचनु । पुरैनार् पिरर पुनर् तोप्पेनुं ।
निरय नैयदि विलंगि निपरे ॥३७॥ अर्थ-राजनैतिक में राज किया हया राजा, मंत्री प्रादि मोहनीय कर्म के तीद उदय से अपनी स्वस्त्री को छोडकर परस्त्री के ऊपर दृष्टि रखने वाले अथवा लग्न की हुई स्त्री दूसरे पुरुष पर दृष्टि रखने वाली, उग्र परिणाम रखने वाली यह सब नियम से नरक में जाते। हैं । तथा मंद परिणामी होने से भी नरक में जाते हैं ।। ८३७॥
परद नायुदन दून मेग विजय माम् याने येदप् । पिरसमार् वनत्तिरुदं पेरंदवन् विलंगिन बाटक ।। युरै शेवा निदन केळा पिरप्पिन युनरं दिट्ट, निन् ।
विरविय कवळं कोंडा दौळि, वे तुइर्त दंडे ॥३०॥ अर्थ-इस प्रकार पहले कहे हुए मनोहर नाम के सुन्दर उद्यान में घोर तपश्चरण करने वाले वचदन्त मुनिराज अपने चतुर्विध संघ को तिर्यच मति में जन्म लेने वाले विषय का प्रतिपादन करते थे। जहां मुनिराज उपदेश दे रहे थे उससे कुछ दूरी पर उस रत्नायुध नाम के राजा का मेघ विजय नाम का हाथी बंधा हुआ था। उस हाथी को मुनिराज के उपदेश से जाति स्मरण होकर देशनालब्धि उत्पन्न हो गई। उस हाथी का महावत उस हाथी को मांस मिश्रित चारा सामने रखकर खिलाने लगा तो उस हाथी ने उमको छूना भी नही, वैसा का बैसा वह चारा पडा रहा ॥३०॥
पिरर् मने पिळत्त नजिर् पेरियव नोरुवन् पोल । निर मदं पुलरंदु नंदु नोचनेन संदे नॅड.॥
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