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मेव मंदर पुराण मन्निय गति लिट्रल माय निन् मनत्त रावल।
पन्नरं कुलत पाणं पान मैक्कु निमित्त मेंडान् ॥८५२॥ पर्व-तब मुनिराज मौन छोडकर बुद्धिसेना वेश्या को उपदेश देने लगे कि देवी ! सबसे पहले मुनिराज को बाहार देने के लिये उत्तम कुल में जन्म लेना पडता है । सत्य और असत्य का निर्सय करना पड़ता है । पाप के द्वारा उपार्जन किया हुमा कर्म और पाप को मैंने बिना जाने प्रज्ञान से किया है। इस कारण पाप कर्म के उदय से निंद्य पर्याय धारण की है। यदि तुम्हारी वेश्या वृत्ति रूपी पाप छोड़ने का विचार हो जाय तो सच्चे गुरु के पास जाकर प्रात्म-शुदि का प्रायश्चित्त लेना चाहिये। पच परमेष्ठी का स्तोत्र पाठ ग्रादि भक्ति सहित करना चाहिये। मद्य, मांस, मधु का त्याग कर देना चाहिये । सम्यकदर्शन पूर्वक भगवान जिनेंद्र द्वारा कहे हुए प्राब्रम को पढना चाहिये और मायाचार से रहित होकर चारित्र का पालन करना चाहिये । इस प्रकार पालन करना यह उच्च कुल का कारण है ।।८५२।।
मरुतंवनुरत्त विन् सोलर वमिर् दार मांडि । तिरंदिय मुरगत्ति नाळु पुलसुत्तेन कळि ळ नीमि ।। पोरंदुव शोल म. माटव पनि कोंडाळ । तिरिंदु पोइमुनिवन कानिन् विचित्र मदिय शेरंदान् ॥८५३॥
अर्थ-इस प्रकार प्रीतिकर मुमिराज ने उस बुद्धिसेना वेश्या को उपदेश दिया। उस वेश्या ने यह उपदेश सुनकर प्रण किया कि माज से मैं मधु, मांस, मद्य सेवन नहीं करूंगी, पापाचरण नहीं करूंगी। शीलव्रत धारण करूंगी। इस प्रकार उस प्रीतिकर मुनि के पास उस वेश्या ने प्रतिज्ञा ली। उस दिन मुनिराज मौन धारण करने के बाद बन में जहां विचित्रमति मुनिराज थे वहां वापस लौटकर मा गये ।।८५३॥
विचित्र मति' वीर विळित्त देन् कोलेन्न । प्रवित्तिर मुनिर पईबोर् कण्णे यार पट्ट वेल्लाम् ॥ बिरित्तुङ नुरेप्प केटु वियंदु वै तुइतु पेटके।
मुरुत्तेळ विरुखके नाम मुंरुव मुम तेरिस केट्टान् ॥८५४।। मर्थ-इस उद्यान में विराजित विचित्रमति मुनिराज ने प्रीतिकर मुनिराज से पूछा कि हे वीर्याचार को निरतिचार पालन करने वाले मुनिराज माहार लेकर पाने में प्रापको इतनी देर किस प्रकार हो गई। वे प्रीतिकर मुनि कहने लये, हे विचित्रमति सुनो ! पाहार के निये बाते समय गली में एक वेश्या बुद्धिसेना का घर था। उसके घर के सामने से जिस समय मैं निकला तो उस वेश्या ने मुझे रोक लिया। वह वेश्या अनेक ग्राभूषणों को पहने हुए तथा सत्र प्रकार के शृगार से सजी हुई थी। उसने मुझसे कई प्रश्न पूछे और मैंने उनका धर्मोपदेश के रूप में प्रागम
गगमानुसार उत्तर दिया। उसने उपदेश सुनकर पांचों पापों का त्यागकर, पांच प्रणवत ग्रहण किये। इस प्रकार विचित्रमति मुनि को वह प्रीतिकर कह रहे थे । विचित्रमति के
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