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मेक मंदर पुराण
[ २६३ कायत्तु लुइर्गळ क्केगुं मुत्तिति ।
लेयु मंडियोंडा दिब्वेडुत्तुरं ॥६८०॥ अर्थ-अनेक जल के पात्रों जैसे चंद्र का प्रतिबिंब दिखने के समान अनेक शरीर में रहने वाले प्रात्मा को सुख दुख प्रादि विशेष युक्त विषय को उपमा देने में नहीं पाती। इसलिये भापके मत प्रत्यक्ष और प्रमाण से बाधित होते हैं ।।६८०॥
कार्तुळुवू कडत्तुरंतिमया। लोर तुळुबु नर वादिग लुत्तोवा ॥ नीत्तुळुबुनर् वादिग लुत्तोवा ।
नेर् तुळंब देगनमेंडिडिल् ।।६८१॥ अर्थ-कहीं मिट्टी के पात्र में रहने वाला पानी हवा से हिलता है । उसी प्रकार कदाचित् यह ज्ञान चलायमान होता है अथवा हिलता है यदि ऐसा कहो तो वह बात कई विषयों में संभव होती है, कई विषयों में संभव नहीं होती है। मिट्टी के बर्तन में रहने वाला पानी चंद्रमा के चलायमान होने के समान चंचल दीखता है तो प्राकाश में चंद्रमा चलायममान नहीं दीखता है, यदि आप ऐमा कहोगे तो।।६८१॥
इंब तुंब मुमिर कल याकग्य । वेब दिडं वेडुत्तुरे याल वरं ॥ मुन्स पुण्णिय पाव मुडित्तदर् । पिन् पिरंद लिरत्तलु मिल्लये ॥६८२॥
अर्थ-सुख दुख आदि इस आत्मा के नहीं हैं, शरीर को सुख दुख उत्पन्न होता है। इस प्रकार इसके लिये उदाहरण दिया जाय तो एक जीव पूर्व जन्म में उपार्जन किया हमा पाप और पुण्य का अनुभव करके पुनः जन्म और मरण धारण करता है । यह कभी जीव नाश होता है ऐसा सिद्ध हुआ इसलिये जीव और प्रास्मा भिन्न २ है ऐसा सिद्ध हुमा ॥६८२॥
वारियेन् मेन् मरि निपंव चार्यतान् । नीरि नींगुदलिल्लये निन्नुर । योर मोरइर् निर्ष उडवुयिर् ।
पेर नीपिन मागि पिळत्तदे ॥६५३॥ मर्थ-घडे के पानी में प्रकाश में रहने वाला चंद्र का प्रतिबिंब पडता है। वह प्रतिविब पानी को छोडकर इधर उधर नहीं जाता है। इसलिये भिन्न २ मत वाले पाप लोगों के द्वारा कहे जाने वाला अभिन्न तत्व जोव घडे में रहने वाले चंद्र के समान इस शरीर से पृथक नहीं होता यदि ऐसा कहा जावे तो संभवता नहीं ॥६८३॥
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