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मेरु मंदर पुराण
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अर्थ- अपराजित राजा के दीक्षा लेने के बाद उनका पुत्र चक्रायुध न्यायपूर्वक राज्य करते समय अपने पराक्रम से जिस प्रकार वन में सिंह से सब भयभीत होकर मान जाते हैं उसी प्रकार सब शत्रु राजानों को इसने परास्त कर लिया। राजा चक्रायुध राज करते हुए पंचेंद्रिय सुख को मर्यादा पूर्वक भोगता था । वह मन में विचार करने लगा कि अनादि काल से पंचेंद्रिय सुखों को भोगने पर भी प्रात्मा की तृप्ति इनसे नहीं हुई। जिस प्रकार अग्नि में ईंधन डालने से वृद्धि होती है उसी प्रकार पंचेंद्रिय सुख को जितना २ अधिक भोगा जावे उसकी तृप्ति नहीं होती है; बल्कि वृद्धि ही होती है । विचार करने से वैराग्य भावना उसके मन में उत्पन्न हो गई ।।७७८६ ।। ७७६॥
रिवालरिया वरिया वदनार् । पिरिदाम् विनय-पिनिया वदना ॥ निरंया दुनिला दुविरु पुरगिन् । रुरवे मुयल्वा रुग्णर् बंड्रिलरे ||७८० ॥
ग्रथं- - इस प्रकार वैराग्य भावना से युक्त होकर चक्रायुध राजा मन में विचार करने लगा कि पदार्थों के हेयोपादेय स्वरूप को भली भांति न जानकर वीतराग शुद्ध स्वरूप से युक्त आत्मा के स्वरूप को न जानने वाले अंज्ञानी जीव पंचेंद्रिय जन्य विषयों में मग्न होकर उस क्षणिक विषय सुख के लिये अनेक प्रकार के पापों का संचय करके उससे तीव्र कर्मास्रव का बंध करके इस चतुर्गति में भ्रमरण करते चले आ रहे हैं ||७८०||
विनयान् वरुवियम् वेरुतिडवे । तनं ये नुदलि तळरा वर्गया ॥ निनै वान् विनं नोगि निरंदुडने । पुरवैया दुपोरुंदु मनंत सुगं ॥ ७८१ ॥
अर्थ- शुभाशुभ कर्मों के द्वारा आने वाले संसार-सुख को त्याग कर भ्रात्म-भावना में मग्न होकर उन कर्मों को चार प्रकार के धर्मध्यान ( प्राज्ञाविचय, अपायविचय, विपाक विषय और संस्थान विश्चय के द्वारा कर्मों का नाश करने से अनंत प्रात्मसुख की प्राप्ति होती है । ऐसा विचार किया ।
भावार्थ -- धर्मध्यान के दस भेद इस प्रकार से हैं:
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दसहं धम्मभारणारणं । दशानां धर्मध्यानानामपाय विचयोपायविचय-विपाकविचय, विरागविचय- लोकविचय- भवविचय- जीवविचय- माज्ञाविचय- संस्थानविवय- संसारविचय लक्षणनाम् । तत्र विचयः परीक्षा । १) सन्मार्गान्मिथ्यादृष्टयो दूरमेवापेता इति चिन्तनमपायविचयः । मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्रेभ्यो वा जीवस्य कथमपायः स्यादिति चितनमपाय विचयः । (२) दर्शन मोहोदयादिकारणवशाज्जीवाः सम्यक्दर्शनादिभ्यः पराङ्मुखाः इति चिन्तनमुपायविचयः। ३) कर्मणां ज्ञानाव ररणादीनाम् द्रव्य-क्षेत्र-भय-काल- भाब-प्रत्ययं फलानुभवनं प्रति
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