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मेह मंदर पुराण
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अर्थ - पूर्व जन्म का वणिक भद्रमित्र श्रेष्ठी का जीव श्रावक व्रत को धारण कर भगवान द्वारा कहे हुए वचनों के अनुसार पूजादान प्रादि षट् क्रिया में प्राचररण करने वाला होने के कारण अपनी माता व्याघ्ररणी के द्वारा भक्षित किया हुआा जीव उन राजा सिंहसेन महाराज की पटरानी रामदत्ता देवी के गर्भ में ग्राकर जन्म लिया। नामकरण संस्कार करके सिंहचन्द्र ऐसा नाम रखा गया । श्रागे चलकर घोर तपश्चरण करके उसके फल से नव वैयिक नामक ग्रहमिंद्र कल्प में देव उत्पन्न हुआ। वहां देवगति के सभी सुख भोगकर धायु के प्रवसान पर कर्म भूमि में प्राकर चक्रायुध होकर धर्मध्यान पूर्वक घातिया कर्मों का नाश करके मोक्ष पद को प्राप्त कर लिया। जैन धर्म की यही महिमा है ।। ६१२ ॥
सातवां अधिकार समाप्त ॥
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