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मेर मंदर पुराण
[ ३१५ प्रच्छी गति पाना है तथा दुख से छुटकारा पाना है तो अच्छा कार्य करके सदैव धर्मध्यान में लीन रहो। ऐसा हरिचन्द्र मुनि ने कहा ॥७४७।।
मन्नु देवियु मिळं य्य मैदनु । मिन्नव रायिना रिणिय केवच ।। शेनिई लिरंदव शीय चंदिरन् ।
द्रनवर उरैपत केळ धरण बेंद्रनन ॥७४८॥ अर्थ-राजा सिंहसेन और उनकी पटरानी रामदत्ता देवी तथा उनका छोटा राजकुमार पूरणचन्द्र इन तीनों जोवों ने कापिष्ठ नाम के कल्प में जन्म लिया। आगे ऊपर अवेयक में अहमिंद्र होकर जन्म लिया हुआ राजा सिंहसेन का ज्येष्ठ पुत्र सिंहचन्द्र उस अहमिंद्र लोक में प्रायु को पूर्णकर कर्म भूमि में पाया। इस विषय का हम प्रतिपादन करेंगे। हे धरणेंद्र ! उसको लक्ष्य पूर्वक सुनो-ऐसा प्रादित्य देव ने धरणेंद्र से कहा ।।७४८।।
राजा सिंहसेन, रामदत्ता देवी व पूर्णचन्द्र इन तीनों जीवों का स्वर्ग प्राप्त कराने वाला छटा अध्याय पूर्ण हुआ।
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