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मेर मंदर पुराण
[ ३१६ शेंजरम वरिद शिल डितिरन् मारन् ।
मैंद नोडु पोर् तोडगि वाळि तोड लुट्रान् ॥७५६॥ अर्थ-जब वह बालक पांच वर्ष का हो गया तब राजा ने एक उपाध्याय पंडित के पास कला शास्त्र प्रादि २ सीखने के लिये उनके प्राधीन कर दिया। बाद में वह राजकुमार थोडे दिनों में तर्क व्याकरण, शस्त्र-शास्त्र मादि अनेक कलाओं में उत्तीर्ण होकर युवावस्था को प्राप्त हमा ।।७५६।।
अंगदन मननपराजित नरिंदु । कोंगरंतु पोलु मुले कुब्वैयन् सेव्वाय ॥ संगुळलि चित्तिर नन् माल येनुं शोंबोन् ।
वांगनय तोळि तुनै यागमलि बित्तान् ॥७६०॥ अर्थ-यौवनावस्था को प्राप्त हुए चक्रायुध कुमार को देखकर राजा अपराजित ने उस कुमार के लिये अत्यन्त सुन्दर सर्वगुण सम्पन्न शीलवान एक राजा की कन्या चित्रमाला के साथ विवाह कर दिया ॥७६०॥ कापिष्ठ स्वर्ग से किरणवेग का भरत क्षेत्र में प्राकर जन्म लेना।
मिति नोडु मेषं विळ याडवदु पोल । वन्न नडे मोडष नमरं दोळ गुं वळिनान् ।। मन्नरुक्क वेगन मलि काविट्टत्तिन बळ वि ।
येन्नबर् कांपुक्ल्ब नागिय बदरित्तान् १७६१॥ अर्थ-चक्रायुध राजा अपनी पटरानी चित्रमाला के साथ विविध भांति के इन्द्रिय जनित सुखोपभोग करते हुए आमन्द से समय व्यतीत कर रहा था। देवयोग से निमित्त पाकर पूर्वभव का राजा किरणवेग का जीव जो संसार से विरक्त होकर दुर्द्धर तपश्चर्या करके समाधिपूर्वक शरीर को त्यागकर उत्तम देवगति को प्राप्त हुना, वह वहां से उत्तम स्वर्गीय सुखों का दीर्घकाल तक अनुभव करके वहां से चयकर इस कर्म भूमि में चक्रायुध रानी की पटरानी चित्रमाला के गर्भ में पाया और नवमास पूर्ण होने पर रानी ने पुत्ररत्न को जन्म दिया ।।७६१॥
वानत्तु मिन्नु मुन्नान् मविइने पयंददे पोर । ट्रेनुत्त मुळि बिनादेवन पेट्र पोक्वि ।। नूनत्तै वैश्यत्तिन कनगदि निडवविमन्नन् ।
मामत यु?य नाम वायुर नेमिट्ठार ॥७६२॥ अर्थ-जिस प्रकार शुक्ल पक्ष की द्वितीया में प्राकाश अत्यन्त निर्मल रहता है उसी प्रकार अत्यन्त सुन्दर मुख कमल से सुशोभित उस चित्रमाला की कुक्षि से परम तेजस्वी पुत्र
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