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शाम 4
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मेक मंदर रामह
नहीं है । इसलिये वस्तु में रहने वाले अनेक भेदों को कह नहीं सकते ॥७०७।।
प्रत्तियालति जीवनरिविना लरिव नेन्नि । लत्ति माराय वेल्ला गुरगत्तंयु मडय पदि । नत्तियाम् भंग तोडि जोव नै नाति येन्नु ।
मितिर भंगमेळू पोरु ळिड इरंद वारे ॥७०८॥ अर्थ - यह अात्मा सत्स्वरूप ऐसे अस्ति रूप से चेतन नाम के ज्ञानादि गुण गुणी से युक्त तत्स्वरूप या अनादि काल से अस्ति रूप है क्योंकि अस्ति रूप को दूसरे अचेतन ऐसे असत स्वरूप है। यदि ऐसा मान लिया तो अस्ति द्रव्य नास्ति रूप होता है। इसलिये जीव पदार्थ को स्याद् अस्ति, स्याद् नास्ति इस प्रकार मानकर प्रत्येक द्रव्य में ७ भंग होते हैं ।।७०८।।
उन्मयु मिन्म तानु मोरु पोरु ट्रन्म यागु । वन्मै सोल्लु मंड्राय भंग मद्रौ विरंडिर् ॥ कन्नुरु पोरुळ योर् सोल सोलाम यतुरिय काटुं।
तिन्नि यो डवाचि येतिन सेरिविन् सेप्पु मूंडम ॥७०६॥ अर्थ-स्यात् अस्ति स्यात् नास्ति ये दोनों वस्तु एक ही स्वभाव के गुण के भेद हैं । क्योंकि स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, स्वभाव इनकी अपेक्षा से अस्ति हो गया। प्रौर पर द्रव्य परक्षेत्र, परकाल, परभाव की अपेक्षा नास्ति हो गया। यह दोनों भेद एक ही द्रव्य में उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार रहने वाले स्यात् अस्ति-नास्ति नाम का तीसरा भंग हो गया। इस प्रकार स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति यह दोनों ही एक समय में कहने में समर्थ न होने के कारण स्याद् अवक्तव्य यह चौथा भंग हो मया। स्याद् अस्ति स्याद् नास्ति स्याद अस्ति नास्ति ऐसे तीन अवाच्य को एक ही समय में कहने को साध्य नहीं होता। इसी प्रकार अन्य २ भंगों के संबंध में जान लेना चाहिये ।।७०६।।
सेप्पिय भंग मेळ बत्तुक्क डोरं सेल्लु । मिप्पडि वुरैत वेल्ला मेव कारत्तो दौडिर् ॥ रप्पित्ति नयंगळागि तडमाद्रं तन्ने याकुं।
मैपड बुनरं द पोदिन बोटि नै विळक्कं वेदे ॥७१०॥ अर्थ-हे राजा किरपवेग! यह उपरोक्त सप्त प्रकार के भंग जीवादि सभी द्रव्यों में रहते हैं। इन सात भंगों को प्रस्ति नास्ति ऐसे भिन्न २ रूप से कल्पना ग्रहण करगे तो व्यवहार का लोप हो जायगा और सप्तभंग विषय को अन्य मिथ्यादृष्टि लोगों के एक २ नय को पकड कर ही मोक्ष मार्य को न समझने के कारण संसार भ्रमण होता है । इस कारस द्रव्य सम्पूर्ण तौर पर एक ही है भिन्न २ नहीं है। ऐसा कहने वाले अन्य प्रारमो मोक्ष को प्राप्ति कैसे कर सकते हैं? | ७१०॥
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