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मेरु मंदर पुराण
[ ३११ रुचि रखना चाहिये । वह प्राणी भव्य होना चाहिये । आर्य कुल में जन्म, भगवान जिनेन्द्र के प्रति निदानबंध रहित भक्ति, देव पूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय प्रादि क्रिया के द्वारा जो पुण्य बंध होता है वह मागे चलकर कर्म निर्जरा तथा शरीर भोग आदि से विरक्तता उत्पन्न कराता है। इसीसे तपश्चरण के द्वारा कर्मों का नाश करके संसार से मुक्ति को पाता है।
प्रश्न-दीक्षा के योग्य कौन व्यक्ति होता है। उत्तर
देश-जाति-कुलोत्पन्नः क्षमा-संतोष-शीलवान् । मोक्षाभिलाषिको धर्म गुरु-भक्तो जितेन्द्रियः ॥ शांतो दांतो दयायुक्तो मदमाया-विवजितः।
शास्त्ररागी कषायघ्नो दोक्षायोग्यः भवेन्नरः ।। उत्तम देश उत्तम जाति,उत्तम कुल में जन्म, क्षमा शील व संतोषी,शीलवान,मोक्ष की अभिलाषा रखने वाला, दयावान, गुरु भक्ति में परायण, जितेन्द्रिय, शांत स्वभावी, दानी, संपूर्ण प्राणियों पर दया रखने वाला, पाठ मद से रहित, शास्त्रज्ञ, कषाय रहित ऐसा जीव जिन दीक्षा के योग्य है।
इस संबंध में प्राचार्य कुंदकुंद ने प्रवचनसार में तीसरे अध्याय में क्षेपक श्लोक १५ में कहा है कि:
"वण्णेसु तीसु एक्को कल्लासंगोतवासहो वयसा ।
समुहो कुंछारहिदो लिंगग्गहणे हवदि जोग्गो। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इन तीन वर्णों वाले व्यक्ति में कोई भी हो, आरोग्यवान, शीलवान, तपवान, उत्तम कुलवान, बालक व अतिवृद्ध भी न हो, निर्विकार, अभ्यतर-बाह्य, परम चैतन्य परिणति से विशुद्ध, ज्ञानवान, व्यभिचार दुराचार से रहित, योग्य, जिन लिंग धारण करने योग्य ऐसा जीव दीक्षा लेने योग्य होता है। स्त्रियों के लिये मोक्ष प्राप्ति नहीं होती है। इसका कारण यह है कि उनमें परिपूर्ण बाह्य अंतरंग परिग्रह के त्याग करने की शक्ति नहीं होती। क्योंकि स्त्री पर्याय विकार सहित है । पूर्णतया महाव्रत नहीं पाल सकती हैं। इस संबंध में अधिक विवेचन प्रवचनसार ग्रंथ से समझ लेना चाहिये ।।७३७।।
ईदिरन् ट्रेविमा मिरैमै शै मुरै मै इल्लै । पंदोडि मगळि रावार पावत्ता पेरिय नीरा ।। मैदे पेरामै पेट्रा लिळंदिडल माद, पेन्नि ।
संदरत्तनय तुंबत्तांगति नींगु वारगळ् ॥७३८॥ मर्थ-देव लोक में सौधर्म इन्द्र के समान इन्द्रानी शचीदेवी को दूसरे को माज्ञा देने को सामर्थ्य नहीं है। उसने पूर्वजन्म में पापोदय से स्त्री पर्याय को धारण किया है। और
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