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मेरु मंदर पुराण
करना, धर्म पर रुचि पूर्वक दृढ श्रद्धान रखना आदि यह सब भव्य सम्यकदृष्टि के लिये प्रथम मोक्ष जाने का मार्ग है। इस प्रकार के तपश्चरण के भाव को प्राप्त करके संसार में रहकर ही धर्म मार्ग पर चलना यही अच्छा है। यही आगे चलकर मोक्ष मार्ग का साधन होगा। एक दम से तप भार को सम्हालना बडा कठिन होगा । तप तीक्षण तलवार की धार के समान है। प्रत्येक प्राणी को यह तपश्चरण भार मिलना महान दुर्लभ है। आप संसार में रहकर ही, सत्पात्रों को दान देवें, पूजा, अर्चा, शास्त्र, स्वाध्याय करो। धर्म पर श्रद्धा रखो तो सहज ही मोक्ष प्राप्त करने की सामग्री प्राप्त होगी। इस प्रकारगृहस्थाश्रम में ही रहकर क्रिया पूर्वक धर्म ध्यान करके समय को बिताना चाहिये ।।७२६ ।
अरुळिय मूड मेन कन विने पर वैरिदु वोट । तरुयेनिलरिय वंदत्तवत्ति नार् पयनु मिल्ले ।। अरिय वत्तवति नडि पिरप्पिनै कडक्कोनादे । लरुविय देन् कोलेन् वरंदव नमैग बेंड्रान् ।।७३०॥
अर्थ-हरिचंद्र मुनि का उपदेश सुनकर पुन: किरणवेग प्रार्थना करने लगा कि शील दान, पूजा आदि ही कर्मों के नाश करने के कारण नहीं हैं। ये तो पुण्य बंध के कारण हैं। यदि पुण्य को मोक्ष का देने वाला समझा जावे तो तपश्चरण ही क्यों किया जावे। इतने महान तीर्थकरों ने क्यों तपश्चरण किया ? आप ही तो यह कहते है कि बिना संसार छोडे कल्याण नहीं होता है । फिर मुझे ही आप ऐसा उपदेश देते हो कि गृहस्थाश्रम में ही रहकर षक्रिया, दान, पूजा आदि करो, ऐसा आपने क्यों कहा ? तब मुनिराज ने कहा कि यदि तुम्हारे मन में तपश्चरण करके कर्मों की निर्जरा करने की भावना उत्पन्न हुई हो और जिन दीक्षा लेने की शक्ति हो तो दिगम्बरी दीक्षा लो वरना दीक्षा लेकर फिर उसमें बाधाएं पड नावे, यह ठीक नहीं । और इसी कारण हमने घर पर ही रहकर धर्म ध्यान करने का उपदेश दिया था। ऐसा हरिचन्द्र मुनि ने किरगवेग को समझाया ।।७३०।।
संकयर करुंगेट शौवाय शीरडि पर यलगुर् । कोंगेगळ् वींगत्तेइंदु नुडंगिडे कोडिय नागळ् ॥ वेंगळियान वेंदन विवदियान् तिरुवै मेव ।
वंग व नुमिळ पट्ट तंबलं पोल वानार् ॥७३॥ अर्थ-हरिचन्द्र मुनि राज के कहने के बाद राजा किरणवेग वैराग्य से युक्त होकर संसार शरीर भोग से विरक्तता धारण कर. जिस प्रकार एक मनष्य पान खाकर चबाकर तुरन्त ही थूक देता हैं उसी प्रकार किरण वेग ने अपनी पटरानी,राज्य वैभव प्रादि सर्व सम्पत्ति भोग सामग्री का एकदम त्यागकर कर दिया ।।७३१॥
पर मारिण मुडियि तोंडे पट्टमुं कुळयि पूर्नु । तर मरिंग यारं ताम मंगवं शेन्न वीरम् ।।
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