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॥ तृतीय अधिकार ॥
मंदर नडुबदाग कुल मलैयारिनवंद । प्रदरतेळ नाडा मारु मोरे दागि । सुंदर तडंगळारिर् सूळ्दवे तिगत मागि।
नंदिय मदिइ निड़ नावलं तीविनुळ्ळाल ।।२२४॥ अर्थ-प्रादित्य देव ने उस धरणेंद्र से कहा कि इस सुमेरु पर्वत के चारों ओर छह कुलगिरी पवत होने के कारण भरत क्षेत्रादि सात देश हैं और चौदह नदियाँ तथा छह सरी. वर हैं। इस महान लवण समुद्र से घिरा हुआ जम्बूद्वीप है। यह जम्बूद्वीप वृत्ताकार है, अर्थात् गोल है ॥२२४।।
पाग तंडत्तै पोलुं भरत खंडत्त शंबोन । नागतुंड योक्कुं धर्म खंडरा नल्ल ॥ भोग तुंड पोलुं शीयमा पुरत्तै सूळं दु । मेग तुंडगळ् मेयुं सोल नाडुदु तिगळ् ॥२२॥
अर्थ--इस जम्बूद्वीप क्षेत्र के दो विभाग हैं, एक भरत दूसरा ऐरावत । भरत क्षेत्र में देवलोक के समान सुशोभित - इस धम खंड में उत्तम भूमि के समान अत्यंत सुन्दर और शोभायमान सिंहपुर नाम का नगर है। उस नगर के चारों ओर अत्यंत शोभायमान अनेक ग्राम हैं ।।२२५।।
शियमारगरसिन् ट्रन्म सेण्ण शिरिदु केन्मो। काय माराग शेलवोर कंडपिन कउंदु पोगार ॥ तूय वान तलंश कुंड शोले कन् मांड तम्मार ।
शेइळे मडनल्लार पोल शित्तनु किनिय दोंडे ॥२२६॥ अथं -वह सिहपुर नगर किस प्रकार है उस विषय को मै प्रतिपादन करूंगा। प्राप ध्यान पूर्वक सुनो। उस सिंहपुर नगर में जाने वाले विद्याधर देवों की भावना उस पदन को छोडकर जाने को नहीं होती, वह ऐसा ही सुन्दर नगर है। वहां की भूमि अत्यंत निर्मल कृत्रिम पर्वत तथा राजमहल आदि के देखने से, जिस प्रकार सुन्दर स्त्री वस्त्राभरण से अलकार सहित अलंकृत होकर खडे होने से देखकर मन आकर्षित होता है, अथवा काम विकार उत्पन्न होता है, उसी प्रकार सिंहपुर नगर को देखकर देवो तथा विद्याधरों का मन मोहित होता है ॥२२६।।
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