________________
२५६ ]
मेरु मंदर पुराण
मिन्निनाडु मरबयर् मेवलार् ।
पोन्नुलगदु पोलु मोर् पालेलाम् ॥५८४॥ अर्थ-उस विजयाद्ध पर्वत के एक अोर वीणा, वाद्य, संगीत सहित वहां की रहने वाली शशिदेवी विद्याधरियां अत्यन्त शोभायमान नृत्य करती है । उस नृत्य कला को देखकर ऐसा मालूम होता था जैसे स्वर्ग की अप्सरायें ही नृत्य कर रही हों ।।५८४।।
कोंगु वागै कुडिसं कुरुंदुनल् । वेग सेनवगं तन्वर्ग पाडलं ॥ वांगु वाळयुं ताळयुं पुरणयुं ।
पांगिनोगिन पार्मिश इल्लये ॥५८५॥ अर्थ-उस पर्वत पर नारियल के वृक्ष जाहीजूही की लता, नीबू का झाड, ताड वृक्ष, केले के झाड तथा चम्बल आदि नाम के अनेक जाति के वृक्ष अनेक प्रकार के सुन्दर २ फूलोंदार सुगन्धित वृक्ष आदि उस पर्वत पर हरे भरे सुशोभित दिखाई देते थे। उस पर्वत की उपमा देने को संसार में ऐसी अन्य और कोई वस्तु नहीं हैं ।।५८५॥
कळ्ळु मीळं दल रुंकळ नीर चुने । पुळळोलिप्प वंडार. तेळू पूम पोगै । बेळ्ळ मार दुळ विड्रि विळवय ।
छुल्ल वण्ण मुरेत्तर करियवे ॥५८६॥ अर्थ-कनेर के पुष्प, अनेक प्रकार की लतानों में लगे हुए पुष्पों की वाटिका, पानी का तालाब, हरे भरे वृद्धिंगत धान की फसल, वहां की अत्यन्त सुन्दर भूमि, सुगन्धित धान की बाली प्रादि का वर्णन कहां तक किया जावे, वहां की भूमि अत्यन्त सुन्दर व अवर्णनीय है।
॥५८६॥ मट्रिंद मलै मिस वडत्तेन सेडियिर् । कोट्रव रुरै पदि कोडियूर् गळार् । सुद्र पट्टि रुंदवै नट्रोरु बदिर् ।
ट्रेकोरु पुरिनल दरणि तिलगमे ॥५८७।। अर्थ-इस विजयाद्ध पर्वत पर उत्तर दक्षिण श्रेणी में करोड से अधिक संख्या के ग्रामों से चारों ओर घेरे हुए विद्याधर राजाओं के नगर थे । वह नगर एक सौ दस थे। वहां की श्रेणी में धरणी तिलक नाम का एक नगर है । ५८७॥
कोडिमिडै गोपुर वीदि वायला । वडिवुडै मगळिरुं मैंदरु मलिइन् ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org