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मेरमंदर पुराण यह बतलाया है कि व्यवहारनय पर्याय के माश्रय है और निश्चयनय द्रव्य के प्राश्रय है। पति निश्चयनय का विषय द्रव्य है पार व्यवहारनय का विषय पर्याय है।
ववहारो य बियप्पो भेदो तह पज्जयो ति एयट्ठो ॥५७२।। ।गो जी.) व्यवहारेण विकल्पेन भेदेन पर्यायेण । (समयसार गाथा १२ टीका)
' व्यवहार, विकल्प, मेद और पर्याय बह सब एकार्थवाची शब्द हैं । क्योंकि निश्चय नय का विषय द्रव्य है और व्यवहारनय का विषय पर्याय है। प्रतः निश्चय नय का हेतु द्रव्याथिकनय है भोर व्यवहार का हेतु पर्यायार्थिक नय है ।।६३२॥
अलगिला परि विनकन नगिवन् । बुलगेला मुळांगिय उन्ने यन् ॥ मबमिलाद ममत्तिरे त्तपिन् ।
नलगि लामेय देन करणवायदे ॥६३३॥ अर्थ-माप अपने केवल ज्ञान रूपी प्रकाश के द्वारा सर्व द्रव्य पर्यायों को एक ही समय में जानने वाले हैं। हे भगवन् ! आपके समान मेरे कलंक रहित मन, वचन, काय से ध्यान करने से मेरे अन्दर भी भापके समान गुण आ जाते हैं ।।६३३।।
बेरियार मलर् मोतु सेल पोदु पू। मारियाय मू लोग मेडक्कु मा ।। बीरिया दरिद बिनैतीर मल् ।
बारि यावर कायर वेदने ॥६३४॥ अर्थ-हे धर्मचक्र के अधिपति ! हे त्रिलोकीनाथ ! पाप लाल कमल पर गमन करने वाले हैं। देवों के द्वारा पुष्प दृष्टि करने योग्य हैं । अनन्त गुण व अनन्त शक्ति से युक्त प्राप की स्तुति करने से कर्मों का नाश होता है । इस कारण पाप भक्ति,स्तुति के योग्य हैं। देवागम स्तोत्र में समंतभद्राचार्य ने भगवान की स्तुति करते समय भगवान के प्रति यह प्रश्न उठाया कि हे भगवन् !
"देवागम-नभोयान-चामरादि-विभूतयः।
मायाविष्वपि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान् ॥ हे भगवन् ! मापके समवसरण में देवों का प्रागमन, माकाश गमन, छत्र-चंबर आदि की विभूति जो देखने में पा रही है इसलिये पाप यह कहते होंगे कि इन विभूतियों के कारण मुनि हमारे दर्शन करते हैं। परन्तु इन विभूतियों के कारण से तो पाप महामुनियों के द्वारा स्तुति करने योग्य नहीं हो सकते; क्योंकि इस प्रकार विभूति तो मायामयी मस्करी आदि इन्द्रजालियों में भी पाई जाती है। देव प्राज्ञा-प्रधानी हैं, देवों का भावागमन व अन्य २ विभूति पापमें समझ कर हमारे समान परीक्षा प्रधानी स्तुति करना नहीं मानते हैं। इसलिए
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