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मेर मंदर पुराण
[ २८७ अर्थ-संतान के अवसान में प्राने वाले स्कंध को मोक्ष होता है। ऐसा यदि कहते हो तो पहले समय में किये गये तप के प्रभाव से उस जीव को कौनसा फल मिलता है? और किस फल का अनुभव करता है? इस प्रकार कहने वाले एकांत अनित्य मत वालों को मोक्ष की प्राप्ति कहां से होती है ? अर्थात् कहीं से नहीं होती। ६६५।।
इट्ट मारुं विट्ट. मेर् कोळिदु तन सीन् मारागि । तिट्ट मंड मरुतलिप्प तेरा तनित्त मेंवाड्रन् । सेट्टर केट्टे पोइडुग तडयाट्ररुत्तु वोडेदुं ।
शिट्टर सोर् कदचित्ते येनित्त मेंवार तिरुवरमे ॥६६६॥ अर्थ-अनित्य पात्मवाद से युक्त बौद्ध दर्शन में प्रात्मा सर्वथा नित्य होने से बुद्धि इच्छा ज्ञानादि का नाश होना यही निर्वाण है। अथवा जैसे दीपक बुझ जाता है उसी प्रकार प्रात्मा का नाश होता है, इसी को निर्वाण कहते हैं। अर्थात् जिस प्रकार दीपक बुझ जाने
उजाला नहीं है, उसी प्रकार प्रात्मा शरीर में से निकल जाने के बाद दीखता नहीं है, बस इसी को निर्वाण कहते हैं । इस प्रकार यह क्षणिक बौद्ध मत है ॥६६६।।
वैर मुंड यन् वैयत्तुहर् कण्मेन् मायै मैदन् । शैइर् विडसया मुन्नूरा नरक्केड मनित्तं सोना ।। नईरिन इल्लं येंड्रा नूनिन युंग वेंड्रान् । पईरिनार कोल युम सोन्नान मुत्तियुम पाळेट्टिान् ।।६६७॥
अर्थ-बौद्ध मत वाले,बौद्धमत कहलाने वालों में परस्पर में विरोध पाता है अर्थात् प्रसंगत है। उनका तत्व संसार का नाश कर मोक्ष प्राप्त करने का विषय जैन सिद्धांत के विरोध का कारण है।
भावार्थ-यह बौद्धमत मायादेवी के समान. है । इस लोक में रहने वाले जीव दयामयी धर्म को न जानने वाले सर्वग क्षणिक अथवा नाश होना ऐसे कहने वाले जीवों को अनात्मवाद से क्षणिक हैं, ऐसा प्रतिपादन करने वाले, मरे हुए जानवर का मांस खाने का समर्थन करने वाले, जंगल में कोई जीव हिंसा कर रहा हो उसका विरोध न करने बाले तथा कोई जीव का घात करके मांस लाकर देने और खिलाने में कोई दोष न होना ऐसा कहने वाले तथा मोक्ष में किसी वस्तु का या बीव का न होना ऐसा बौद्धमत वाले प्रतिपादन करते हैं ।
॥६६७॥ भावचिय यावर सोल्लार पोळिन येलरि वेळामै । प्रवाचिर. सोबार मोरळिन् मेलरि. वेळूद ॥ बवाचि. सोनार सोलप्पा पोळु मुंगे। बवाधिय पक्वान् हुन् सोन्मार माय तंचित तायत्ते ।।६६८॥
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