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मेर मंदर पुराण
[ २६६ ___अर्थ-उस चैत्यालय की वेवियां तोरण से घिरी हुई थी। उस चैत्यालय के चारों ओर अत्यंत प्रकाशमान चैत्य वृक्ष हैं और जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने जाने को चार वीथी है। चारों वीथियों पर चार ही गोपुर हैं ॥६२२ ।
कनगमन्यरिणयं कंबम् कुमुरम पालिकालु । मननिर मूतमांड पावंगळ कूडशाल ॥ विमवेन वेबमूडम पुराणम मेळुखि बग्योन् । ट्रन विडं प्रोडवेंडोर तले बन दिहक्क यामे ।।६२३।। प्रायतं कादमागि यवनर यगल मागि। यायवन् काल कुरेद तुपरना यमलमागि । नोदिया निड़ गंद कुग्गिळू ट्रिट्टागि ।
वायद लोर मूड.मुन्नु मंडयम् पलवमामे ॥६२४॥ अर्थ-उस अकृत्रिम चैत्यालय के स्तम्भ रस्मों से निर्मित हैं जो अत्यन्त प्रकाशमान और शोभायमान दिखते हैं। और उसके बाहर नर्तन मंडप में जिस प्रकार नर्तकी नृत्य करती है उसी प्रकार के अनेक रंगों से चित्रित चित्राम हैं। और मागम के अनुसार द्वादशांग भाव को वहां चित्रित किया गया है और उसमें महंत भगवान के प्रतिमा कृत चित्र हैं उस चैत्यालय के निचले भाग से ऊपर के भाग तक एक कोस चौडा, सवाकोस ऊंचा और सवा कोस लम्बा इस प्रकार एक सौ माठ संख्या वाले मंडप हैं ।।६२३॥६२४॥
स्तपै चेदियमर जयंतयाम । मा पेरु कोडिमलिमानतंबनर् ॥ गोपुरन कोडिनिर तोरण मि ।
बापिमानंदय बंद बंदवे ॥२॥ अर्थ-यह स्तूप चैत्यवृक्ष और वैडूर्य नाम के रत्नों की म्यबा, महान सुशोभित मानस्तंभ, विशेष सुन्दर गोपुर प्रादि यह सभी पूर्वी दिशा में थे। जिनके पास पास कई तालाबरा
पाड मामिस बंद किरण बेगनर । कूटमालुरै विडंकुरुगु मेषु॥ नीरियादिळिदु पिलितत्तिन् मेलबरा।
कोडुनीळगोपुरकर बिग ॥२६॥ - अर्थ-वह किरणवेग अनेक प्रकार के विचित्र नृत्य करने वाली नर्तकी के समान चंचल घोडे पर चढकर सिहायतन नाम के मंडप में जाने के लिये शीघ्रता से चैत्यालय के पास नीचे माकर घोडे से उतरा पोर पोरी दूर पैवस पब कर गोपुर के माये माकर जिनेन्द्र
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