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मेर मंदर पुराण
[ २६७ मुडिविला कोडुमै ताय मोगंदान् मुन्ममिल्ला । कडिय तीविनेगळेला कट्टवे तानु कंटु ॥ केडुवळितान् केडामुन् केडेंद विनक्कु मुट्टा।
तडुत्तलु करिय मोग मरसन विनगेट केंद्रान् ॥६१५।। अर्थ-हे राजन् ! अनेक प्रकार के दुख को देने वाला यह मोहनोय कर्म अनादि काल से आत्मा को दुख देता पा रहा है। जब तक मोहनीय कर्म का नाश नहीं होता तब तक आत्मा के साथ लगे हुए मोहनीय कर्म जनित दुःख भी नष्ट नहीं होते । यह कर्म महा बलवान है। जैसे सेना में सेनापति प्रधान होता है उसी तरह पाठों कर्मों में मोहनीय कर्म प्रधान है। इस कर्म के नष्ट होने पर अन्य कर्म अपने पाप खिर जाते हैं । इसको जीतना अत्यत कठिन है॥६१५॥
मबियिना लार्व सेट्र मयक्कत्तान् विनयवट्रान् । कदिगळुळ कळुमक्काय मारिलोंड्रामक्कायं ।। पोविय वैबोरियै याक्कं पोरिगळार पुळत्तमेवि ।
विदियिनाम् वेळके शेट्र मीटुमच्चुळट्रि यामे ॥६१६।। अर्थ-प्रज्ञान से रागद्वेष तथा मोह उत्पन्न होता है। मोह से आत्मा में कर्म का बंध होता है। उन कर्मों से छह काय के जीवों में जिस २ पर्याय में जीव जाकर अपनी भावना के अनुसार पर्याय धारण करता है , वैसे ही पूर्व जन्म में किया हुआ शुभाशुभ परिणाम के अनुसार पर्याय प्राप्त करता है। यह प्रात्मा अनादि काल से मोह के कारण अनेक पर्याय को धारण करता हुमा संसार में परिभ्रमण करता आ रहा है ॥६१६।।
परियट्ट मिदनै वेल्वार् पान्मै यार् पान्मेइल्लार् । तिरिवटें पोल नानगु गदिगळ्ट तिरिवरेन्न ।। किरियेद्र विरमै तन्नै किरण वेगन कन्वैत्तु ।
पोरियोक्क भोगं विटु पुरवलन मुनिव नानान् ॥६१७॥ अर्थ-जो ज्ञानी भव्य जीव हैं वे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव को जानकर मोक्ष पुरुषार्थ के द्वारा तपश्चरण करके मोक्ष भी प्राप्त कर लेते हैं। इस मार्ग को न जानने वाले संसारी जीव कुम्भकार के चक्र के समान है जैसे चक्र एक ही जगह चक्कर करता रहता है उसी प्रकार यह जीव एक ही जगह भ्रमण करता रहता है। इस प्रकार मुनिराज ने आर्यावर्त को उपदेश दिया। उस उपदेश.को सुनकर वह प्रानंदित हुआ और पुनः मूनियों को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके अपने नगर में लौटकर आ गया। अपने पुत्र किरणवेग को बुलाकर उस नगर का अधिपति बनाया अर्थात् उसका राज्याभिषेक कर दिया। और मन, वचन, काय से सर्वसंघ, कुटुम्ब परिवार प्रादि का त्याग करके जिनदीक्षा को धारण कर लिया ॥६१७॥
येरिमुयं गिलंगु वेळान टुरंद पिनिसोदर यान् । करिकुळर् करुंगट सेवाय सूर्यावरत्तन ट्रेवि ।।
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