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मेरु मंदर पुराण कुंजिगळ करवळे सुरुळिन कोत्तन । मंजिला मदियिन दिय: वान् मुगं ॥ कुंजर तडक्क तिन् पुयंगन् मार्वगं ।
पंजिन मेल्लनैनल पदुमै केन्बवे ॥६०७॥ अर्थ-उस किरण वेग के सर के बाल स्त्रियों के हाथों में रंग बिरंगी चूडियां जैसे चमकती हैं, वैसे चमकते थे। उसका मुख कलंकरहित चंद्रमा के समान सुशोभित था। उनके हाथ हाथी की सून्ड के समान थे। उनका वक्षस्थल लक्ष्मी निवास करने के स्थान के समान प्रत्यन्त विशाल था ॥६०७।।
इड यरि येट्रिन तिडयो वेदरन् । तुडे कडन् माळिगे तूनगळ् पोलुमे । नडे विडे योदुक्कुमा नळिनं कालडि ।
यडेयलर करि योडु कूट्र मन्नने ॥६०८॥ अर्थ-उस किरणवेग का कटिभाग सिंह के कटिभाग के समान शोभायमान था। उनके पांव कदलीस्तम्भ के समान तथा वह तरुण सांड के समान यौवनवान दीखता था। चलते समय उनके पांव के तलवे कमल पुष्प के समान दीखते थे। उनके पास पास के देश के शत्रु राजा उनको देखकर कांपते थे। ऐसा वह पुत्र महान पराक्रमी था ।।६०८।।
कले गुण नलगळिर् कामनन्न वन् । मलै मिस मन्नई कणि वल्लि कन् । मुलै मलि भोगत्तिन मीइम्वन् मोगुना ।
निले इन्म सूर्यावरुत्त नेन्निनान् ॥६०६।। अर्थ-वह किरणवेग संगीतादि ६४ कलाओं में परिपूर्ण तथा मन्मथ के समान यौवनावस्था को प्राप्त हुआ था। ऐसा वह किरणवेग विजयाद्ध पर्वत पर रहने वाली कुमारी के साथ विषय भोग आदि का आनन्द पूर्वक सुख भोगता था। वह आर्यावर्त राजा, यह संसार अनित्य है-ऐसा समझ कर अनित्य भावना का चितवन करने लगा ।।६०६।।
कळिट्रि नुक्करस निडालुम कालवै। येळट्रि सेरिद पोदाव दिल्लनम् ॥ वेळिट्रिनिर् कट्टिय विनइन् तुय ।
रळट्रिन वीळ पोदु मुंडावदिल्लये ॥६१०॥ अर्थ-जिस प्रकार एक बलवान हाथी पानी पीने को जाते समय अपने दोनों पावों को कीचड में फंसाकर शक्तिहीन हो जाता है और प्रयत्न करने पर भी उनके दोनों पांव
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