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मेरु मंदर पुराण शेप्पिय नगकुं नवन शीय माशेन् नेवान् । बेप्प निडराद वेलान वेबर बैंड पेट्रि।। कोप्पुमै इडि निडानुव बिकर पगत्तै योप्पान् ।
तुप्पुरळ तोंडवायार सोळ वेळु कामन कंडाय ॥२२७॥ अर्थ-पीछे कहा हुआ वह सिंहमेन महाराज, उसी सिंहपुर नगर के राजा थे । जिन्होंने सम्पूर्ण शत्रु राजाओं को जीत लिया था जिससे चारों ओर उनकी कीर्ति फैल गई थी। वे उपमा रहित अपने राज्य का परिपालन करते थे। कल्पवृक्ष के समान सम्पूर्ण जीवों पर करुणा भाव रखते थे। अनेक प्रकार धन धान्य दान प्रादि से प्रजा की सहायता करते थे। सभी स्त्रियों को मुग्ध करने वाले मन्मथ के समान थे। इस प्रकार प्रादित्य देव धरणेंद्र को कह रहे हैं ।।२२७॥
वुरण मिदिलंगु वै वेल मन्नव नुळ्ळस ळळाळ । तेनुमिदिलंगु मैं पार दृविया निरामाय दत्ते॥ वानुमिळ दिलंगु मिन् पोलवरम् नुननिडयाळ पारि ।
तानुमिळ तमिळ्दु पद कलसं पोट्रनत्ति नाळे ॥२२८॥ अर्थ-अत्यंत प्रकाश से युक्त हाथ में प्रायुध को धारण करने वाला सिंहसेन राजा पा। मेघ के रंग के समान उनके शिर के केश थे जो बिजली के समान चमकते थे। उनकी पटरानी अत्यंत सुन्दर शरोरवाली तथा वस्त्राभरण से प्रकाशमान थी। जिस प्रकार क्षीर समुद्र के रस को सोने के कलशों में भरकर रखा हो उसी प्रकार उनके स्तन भरपूर थे। ऐसी सुन्दर उन सिंहसेन महाराज के रामदत्ता नाम की पटरानी थी।॥२२८॥
वेद नान्गगं मारु पुराण, विरिक्कू सल्लिर् । ट्रीदिला सत्तियगोडनामं श्री भूतियेबान् ॥ पोदुला मुडिनानू कमैचनाय पुनरंदु पिन्न ।
तीदिला मगट्रि वैयं शेध्विपार काकुनाळाल ॥२२६।। अर्थ-चार वेद, छह पुराण, द्वादशांगादि शास्त्र, अठारह पुराण और उपपुराण को कंठगत करके निर्दोष वचन से सभी को उपदेश करने की सामर्थ्य से युक्त सत्यघोष नाम का ब्राह्मण उनका मंत्री था। उनका अपर नाम शिवभूति था। वह सिंहसेन राजा. मंत्री सहित प्रजा का परिपालन करता था। ।।२२।।
पनशंख निधिक्किड मायदु । पाषंड मेनप्पगर्मा नगर । मद्र तन् कन् वनिगरुवन् नुळन । सोर कडंद कोडक्क सुबत्तने ॥२३०॥
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