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मेरु मंबर पुराण
ऊनोडु तेनं कळल मोडि नंडाय उरि। तानुबंदेवकु.यदिल दानमाम् तानमां तानुमंडा ॥ मूनुन कोडुमे या• मुडन् पटु मूनु नाईं।
मान मावबकुँ मदिल वर्षयार पोरुगु मूंड. ॥३४६॥ मर्ष-मच, मांस, मधु इन तीनों मकारों को त्याग करके निर्दोष पाहार देने वाले रातार के द्वारा संतोष पूर्वक देने वाले दान को ही दान कहते हैं। ऊपर कहे अनुसार उत्तम मम्मम, बपन्न इस प्रकार तीन पात्र है। श्रावक को दान देना यह जघन्य दान है । पात्र को भार प्रकार रानरेगा कहा है । सत्पात्रों को दान देना उत्तम दान है ।।३४६ ।
पुर्व संबालुर उंडगे बलियिना लुइरे पोट्रिन् । मलहनु पेरिपरि बलिइनालुइरे शाल ॥
मलियु मेल नरगसाळंतु नस्लंगळ् पडुमेंडालि । .. कुनै सुंबारा कृषि इर नंद. मामे ॥३५०॥ पर्व-मांस ममण करने वाले जीवों को तथा चोरी करने वाले जीवों को प्राहार दान देने से कुफम मिलता है, वे भोग भूमि में जाकर जन्म लेते हैं नरक में पड़ते हैं इसलिए सप्त व्यसन वाले बीब तथा मांस भक्षण करने वाले जीव को कभी भी आहार दान नहीं देना चाहिए ॥३०॥
बगनिग लरत्ति निदा राँ पिनियाळर मूत्तार।
गतिगळ् कुररर् मूगर् कोसतोळिल मनत्त मिलार् ॥ अगत् कनेदि नोक्कळिन् लीद बुरि।
मगरिंग मलिद पूणोय महिम बानमामे ॥१५॥ पर्व-दरिद्री मनुष्य व्रताचरण करने वाले भव्य जीव को अथवा व्याधि पीडित, रोग बसित वृद्ध पुरुष, मंगहीन, पंधे, लूले, लंगड़े, व्रतों को पालन करने वालों को अर्थात् एक देशवती श्रावक मादि जघन्य पात्र को दान देना जघन्य दान कहलाता है ॥३५१।।
उरविय परिदुमावि मोळक्कत्तै निरति युळ्ळं। पेरि बळि पदाधि नीकि पिररर्फ नंगट्रि पोतीर् ॥ नेरिपिन तागि नींगा बोटिवं विळदल सेय्यु ।
मुस्तयर कोंब एना उत्तम दान मामे ॥३५२॥ मर्ष-अहिंसा महाव्रत को धारण करके एकेंद्रिय मादि पंचेंद्रिय जीव पर्यंत अर्थात् संपूर्ण जीवों की रक्षा करने वाले, मात्म-साधन में लीन रहने वाले अथवा सामायिक प्रादि पट् भावपश्वक क्रिया में सदैव तल्लीन रहने वाले, पंचेंद्रिय विषयों को रोककर हमेशा प्रारम
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