________________
२३४ ]
मेर मंदर पुराण RadsadeatmusbadenuatuavanaunaugmenadurnainamastatinatantatuLLAIMADIRAMAMAAdlinedarmernama मोक्ष की इच्छा करने वालों को व्रत का महत्व क्या है ? इसके समझने की अत्यन्त प्रावश्यकता है। जैन सिद्धांत में अनेकांत दृष्टि रखी है। एकांत नहीं है। इस कारण एकांत अनेकांत को भली प्रकार देखा जाय तो जैन धर्म का निचोड मालूम होकर मोक्षमार्ग की परिपाटी का भली प्रकार से ज्ञान हो सकता है। इसलिए केवल एकांत को पकड कर ही मोक्ष की इच्छा करना चाहते हैं वह उचित नहीं। इस प्रकार वह श्रीधर देव बारहवें स्वर्ग में मानन्द पूर्वक स्वर्ग सुख का भोग भोगते हुए काल व्यतीत करने लगा ।। ५११।।
मंदिरि तमिलनु मरित्त मालवन । तंदर मिड्रि वानरम दागि नान् ॥ सिंदूर कळिदिन मेल सेरिंद वंदिनाल ।
वेंतुयररा वरवत्तै वोटिनान् ॥५१२॥ अर्थ-इधर सत्यघोष नाम के मंत्री का मरण होने के बाद सिंहसेन राजा ने धमिल नाम के ब्राह्मण को मंत्री पद दिया । तदनन्तर वह ब्राह्मण मंत्री मरकर सल्लकी नाम के वन में बंदर हो गया। पूर्व जन्म के प्रेम के कारण उस बंदर ने उस हाथी को कुक्कुड सर्प द्वारा काटा हुमा देखकर सर्प पर उपसर्ग किया और मार डाला ।।५१२॥
रगं वान रत्तिन लुई रिळंदु पोय । नरग मूंडा वदै ननि येन्नरु । पेरिय मादुयर मदुद्र दादवम् ।
विरंगिनाल विनै कनिन् रुदयन्सेय्यवे ॥५१३॥ अर्थ-पूर्व जन्म में उपार्जन किया हुआ शिवभूति नाम के मंत्री का जीव वह कुक्कुड सर्प मरकर अत्यन्त दुख देने वाले तीसरे नरक में जाकर उत्पन्न हुआ ।।५१३।।
वोट्टगं कळुदै नाय पांबु वासियु। निट्टदोर कुळिइन मिक्केळंदु नारि९॥ मट्टिडै वीळं ददि लमैंद याकै यात् ।
सुट्टदो पैनत्त नि पोल तूंगिनान् ॥५१४॥ अर्थ-वह कुक्कुड सर्प का जीव गधे, ऊंट, सर्प, कुत्ता, घोडा आदि पशुओं के सडे हुए मांस की दुर्गंध के समान घोर नरक में अत्यन्त दुख को भोगते हुए काला सिर धारण किया हुमा व नीचे मुंह ऊपर पांव हुए एक योजन ऊपर से नीचे गिर जाता है और उसका मुंह चूर २ हो जाता है ।।५१४॥
मुयुडंबदु प्रोरु मूळ्त मेगखें । परेंमिड भूमिमेर पवित्त पोळविने ॥
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org