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मेरु मंदर पुराण
[ १८५ भावार्थ-प्राचार्य वृहद् सामयिक पाठ में श्लोक ५१ में कहते हैं कि परिग्रह ही इस जीव के पतन का कारण है। अनादि काल से इस ही के कारण जीव संसार में परिभ्रमण कर रहा है।
"लक्ष्मी कीर्ति कलाकलाप-ललना-सौभाग्य-भाग्योदया- . स्त्यज्यंये स्फुट मात्मनेह सकला एते सतामजितैः । जन्मांभोधिनिमज्जिकर्मजनकः किं साध्यते कांक्षितं, यत्कृत्वा परिमुच्चते न सुधियस्त त्रादरं कुर्वते ।।
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लक्ष्मी, धन, पुत्र राजपाट, सांसारिक यश, कला, चतुराई, स्त्री आदि सर्व पदार्थ मात्र इस देह के साथ हैं। प्रात्मा का और इनका साथ कभी हो सकता है। एक दिन प्रात्मा को छोडना ही पड़ता है। फिर इनके पैदा करने में, इकट्ठा करने में, प्रबंध करने में बहुत रागद्वेष, मोह व बहुत पाप का संचय करना पडता है। उस पाप से इस आत्मा को संसार समुद्र में डूबना पडता है, दुर्गति के अनेक कष्टों को सहना पडता है, तथा जो बुद्धिमानों के लिये इष्ट है अर्थात् मोक्ष व स्वाधीन आत्मिक सुख है वह और दूर होता चला जाता है । इन स्त्री पुत्र, धनादि के भीतर मोह करने से प्रात्म-ध्यान व वैराग्य नहीं प्राप्त होता जो मोक्ष का साधक है।
प्रयोजन यह है कि धनादि पदार्थों का मोह करना वृथा है। इनका संचय करना भी वृथा है, क्योंकि एक तो ये कभी आत्मा के साथ जाते नहीं,स्वयं छूट जाते हैं । दूसरे इनके मोह में प्रात्मा का उद्धार नहीं होता है। प्रात्मा पवित्र नहीं हो सकतो है। इसलिये ज्ञानी को
राग ही नहीं करना चाहिये। इनको उत्पन्न करने का भी मोह छोड देना चाहिये। और प्रात्म-कार्य में लग जाना चाहिये। जिस वस्तु को बडे परिश्रम से कष्ट सह करके एकत्र किया जावे और फिर उसे छोडना ही पडे उस वस्तु की प्राप्ति के लिये बुद्धिमान लोग कभी भी चाह नहीं करते हैं । अतः धनादिकी चाह छोडकर स्वहित करना ही हमारा कर्तव्य है ।।३८५॥
नावि नारु कुळलगळ विरिदिडा । अधि पोन कलावि किडंदन ॥ देविय तेरुदा रेडुत्त त्त य ।
रोवं वण्ण नुरैतुड नोविनार ॥३८६।। __ अर्थ-पिछले श्लोक में कहे अनुसार राजमहल में सिंहसेन महाराज के मरण हो जाने के बाद अत्यन्त सुन्दर काले बालों से युक्त राजा की रामदत्ता पटरानी जैसे मोर अपने पंखों को फैला कर नीचे गिरा देता है उसी प्रकार वह अपने पति (राजा सिंहसेन) के मोह से मछित होकर नीचे गिर गई। सब महल की दासियों ने अनेक प्रकार से उपचार करके उसको सचेत किया और उठाकर बैठा किया। पति वियोग से शोकाकुल होकर वह रानी दुख से विलाप कर रही है । उस दुख को शांत करने के लिये अनेक स्त्रियां और दासियां कई प्रकार की धार्मिक बातें कह करके उनको समझाना प्रारंभ किया ।।३८६।
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