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मेरु मंदर पुराण करणमेला वेंड ने कंडवर्गाळ् काय ।
मरणमिला वीडेदन मट्रोर पोरुळु ॥४६३॥ अर्थ-स्तुति करते समय श्रीधर देव भगवान से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! जिस वन में सिंह व्याघ्र आदि रहते है, ऐसे सल्लकी नामक वन में मैंने हाथी की पर्याय को धारण किया था। परन्तु मेरे पूर्व जन्म के भाग्य के उदय में आने से सिंहचन्द्र मुनि मुझे मिल गये। वे मनि अपने वचनामत के अनुसार मुझे भी वहीं धर्मामृत वचन सुनाकर मेरी प्रात्मा को जागृत कराया । अर्थात् पंच पापों का त्याग कराया। इसी कारण पशु पर्याय को त्यागकर धर्म ध्यान से अब उत्कृष्ट पर्याय को धारण को है । यह आपके वचन की हो शक्ति है जो मैं निंद्य पर्याय को छोडकर देवगति में आया । अब मन, वचन, काय त्रिगुप्ति से आपको देखकर अति अनुभव में लीन होकर स्वानुभूति को प्राप्त होकर जन्म मरण को नष्ट करके मोक्ष प्राप्त करना दुर्लभ नहीं है , बडा सुलभ है। यह इस कारण सुलभ है कि आपके वचनों में महान शक्ति है ।। ४६३||
निळोल निड्र न्ने वंदडैदा याट्रा। यळोकि येंद मिला विवत्तै याकि ॥ वळत्तरा मुत्तिइन् कन् वैक्कु निन् पोपीद ।
निळसेरा माट्रा नेडु वळिये सेल्वार ॥४६४॥ अर्थ-हे भगवन् ! आपकी छाया के समान हमेशा हमेशा आपके चरण कमल का जाप्य करने वाले जीव इस संसार रूपी समुद्र से तैरकर अत्यन्त सुख को देने वाले मोक्षपद को प्राप्त कर लेता है। प्रापकी पूजा, अर्चा, स्तुति, ध्यान करने वाला जीव अधिक दिन संसार में परिभ्रमण नहीं करता है ।।४६४॥
कामनै युं कालन युं वेंड लग मुंडि नुक्कुं। सेम नेरि प्रळि सेंदामर पुल्लि ॥ प्रमुदिरा पिडि कोळ् पोन्नेइल लुन मनियनिन ।
नाम नवि दादार वोटुलग नन्नारे ॥४६५॥ अर्थ-हे भगवन् ! पाप कामदेव रूपी यमराज को जीतकर तीन लोक के प्राणियों को अनन्त सुख उत्पन्न करने वाले वचनामृत को पिलाकर देवेंद्र चक्रवर्ती पद को देने वाले हैं और देवों के द्वारा निर्माण किये हुए १००८ दल के कमलों में चार अंगुल अधर विराजमान होने वाले हैं । आप हमेशा कभी भी शोक को न उत्पन्न करने वाले प्रशोक वृक्ष के नीचे विराजने वाले हैं और आप पर पुष्पवृष्टि मेघों की बून्दों के समान होती रहती है। देव
आपकी स्तुति करते हैं, और स्तुति करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे श्रीधर देव ने भगवान की स्तुति करते हुए प्रार्थना की ।।४६५।।
इप्पडित्त दित्तेगिय पिनरे। तुप्पडं तोंड वायवर् तुभिना ।।
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