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मेह मंदर पुराण होगी। राजा और मंत्री यदि धार्मिक रूप धारण करेंगे तो प्रजा भी उनका वैसा ही अनुसरण करेगी। यथा राजा तथा प्रजा'। राजा या मंत्री यदि अन्यायी या अधर्मी होंगे तो प्रजाजनों को दुःखी करेंगे। कहा भी है कि:
प्रभुविवेकी प्रमदा सुशोला, तुरंगमाशस्त्रनिपात धीरा॥
विद्वान् विरागी धनिकश्च दाता, भूमंडलस्याभरणानि पंच॥
अर्थ-राजा के पास पांच रत्न रहते हैं। राजा विवेकी, सुशील स्त्री, घोड़े, शस्त्र विद्या धीर, वैरागी विद्वान धनवान होने पर दातार । यह पांचों मनुष्य के लिए प्राभरण है। राजा कैसा होना चाहिए
अहमेवमतोमहिपति, इति सर्वप्रकृतिसान्विता ।
उदधिरेवनीय सुन्दरी, यःस्वभावान् नस्य विमाणमक्षप्रत्॥ अर्थ-राजा लोगों को संपूर्ण प्राणियों को रक्षा करने की सदैव चिंता होनी चाहिए। प्रजा के दुःख को दूर करने में दक्ष होना चाहिए। जैसे समुद्र संपूर्ण नदियों को अपने अंदर समावेश करके गंभीर रहता है और उपमा देने का कारण बन जाता है उसी प्रकार राजा को रहना चाहिए । आपत्ति आने पर भी प्रजा की हर प्रकार की रक्षा करना राजा का कर्तव्य हो बाता है।
यौवनं धनसम्पत्ति प्रभुत्वमविवेकता।
एकैकमप्यनर्थाय, किमु यत्र चतुष्टयम् ॥ अर्थ-यौवन का मद, सम्पत्ति का मद, राज मद, अविवेक मद यह एक से एक बढ़कर है । यदि इन चारों मदों से एक भी मद हो जावे तो कितना अनर्थ करता है और यदि चारों मद मिल जावे तो उनकी गति क्या होगी? मंत्री का गुण
मेघावो प्रतिभाषतो गुणपरो श्रीमान् शीलं पटः । भावज्ञो गुणदोषेनिपुणता संगीत वाद्यादिषु ॥ मध्यस्थो मृदुवाक्यधीर-हृदयाः तत्पंडितो सात्विका।
भाषा भेद सुलक्षणाः सुकाविभिः प्रोक्ताश्र ते मंत्रिणा । अर्थ-जो मंत्री विद्वान होना चाहिए, कलावंत तथा समस्त भाषा का जानकार होना चाहिए । गुणवान 'ऐश्वर्यवान व कीर्तिमान होना चाहिए। मृदुभाषी तथा प्रवा के भावों को समझने वाला होना चाहिए, कवि भी होना चाहिए। प्रजा के कष्ट को दूर करके हित चितवन वाला होना चाहिए। यदि इनसे विपरीत हो जाये तो मंत्री अनेक प्रकार के पाश्य मार्ग में रत होकर सन्मार्ग पर कुठाराघात करप्रे से धर्मार्थ से पुरुषार्थ जो मोक्ष मार्च के साधक है वह नष्ट हो जायेंगे और धर्म को क्षति हो जाएगी। नीतिकारों ने भी कहा है
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