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मेरु मंबर पुराण तप्पिलीर् मरंविट्ट दोबानेन् ।
येप्परि पित्तनो वेड. रत्तनन् ॥२५४॥ मर्थ-सदनंतर भद्रमित्र की बात सुनकर मंत्री कहने लगा कि हे वणिक् ! क्या मेरे पास तुमने रत्नों की पेटी रखी थी? भद्रमित्र ने उत्तर दिया हां! तब मंत्री ने कहा तुमने मेरे पास पेटी कब रखी थी? भद्रमित्र ने कहा कि मैंने आप ही के पास तो पेटी रखी थी क्या आप भूल गये ? तब मंत्री ने कहा कि तुम मूर्ख और पागल तो नहीं हो । मेरे पास रत्नों की पेटी कब रखी थी। सचमुच तुम बावले तो नहीं हो ? मेरे को तुम्हारा परिचय ही नहीं है, फिर तुम एकदम पाकर यह कहते हो कि मै रत्नों की पेटी रखकर गया था। तुम असत्य बोलते हो ॥२४॥
पॅड. नानुन कंडरि येनिनि । मंड वेन के मरिण चेप्पु वैत्तनाळ ॥ निंद्र शांदळ वागि नोकाटिनाल ।
वंड. मंडि म.न नोडे पोगुमे ॥२५५।। अर्थ-शिवभूति मंत्री फिर पूछता है कि भद्र मित्र ! यदि तुमने मेरे पास रत्नों की पेटी रखी है तो बतानो किसके सामने रखी थी। कौन साक्षी है ? जिनके सामने तुमने पेटी रखी हो उनको मेरे सामने लामो, तो मैं मान लूगा, वरना फौरन तुम यहां से चले जाओ। ऐसा डांट-डपट कर उसको भगाने लगा ॥२५॥
नंड शालवु नंबिनिन पेरिनु। कोंडवे युरै ताद्द सोप्पु वैत्तनाळ ॥ भंड मिड: मलदुळ नाळि नाल ।
येंड, मेन्न नी कंडदु मिनये ॥२५६।। अर्थ-इस बात को सुनकर भद्रमित्र कहने लगा कि हे मंत्री ! तुम सब मंत्रियों में श्रेष्ठ हो, तुम्हारा नाम सत्यघोष है । जिस समय यह पेटी मैं रखकर गया था उस समय तुम और मै दोनों ही थे, और कोई नहीं था। जिस समय मैं पेटी रखने पाया था उस समय आपने यह कहा था कि जब कोई नहीं हो उस समय रत्नों को लाना । सो मेरी रत्नों की पेटी आप के ही पास है । पेटी रखने के बाद प्राज ही मैं वापस लेने आया हूं ॥२५६।।
सांड.डिन सत्तिय कोडराम् । प्रांडूनीरांड्रि इन्ने यडि यावकुं॥ तोंड्रिडा मै तरवेंड, सोन नाळ । शांड, वेंड़. जडत्तै परिविलेन ॥२५७॥
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