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मेर मंदर पुराण
[ १४३ मंत्र के बल से निकल जाते हैं उसो प्रकार महान दुख को उत्पन्न करने वाले नरक में बैंच कर ले जाने वाले मोह रूपी पिशाच से गृहीत हुआ शिवभूति मंत्री ने अपने अंदर से मायाचार व कपट को क्यों नहीं निकाला? इस प्रकार भद्रमित्र वणिक् वृक्ष पर बैठा हुआ बार बार कहता है । ।।१७४।।
नीमयुं गुणमु नीड़ जातियु निरमुं कल्वि । शोमयुं सारुवाग वरिंदु नी शय्यु मायं । नेमैं शैदरसन केठ नाळिन् कनीगु मुंडन् ।
कूर्मयुगुणमु मेल्लां काटुवन कोडवेंडान् ।।२७५॥ अर्थ-हे सत्यघोष ! आप श्रेष्ठ गुणों को धारण करने वाले हो, उत्तम ब्राह्मण जाति में जन्म लिया है-पापका रूप सुन्दर है, सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता हो आपकी कीर्ति चारों पोर फैली हुई है। ऐसा मापने भी मन में समझ रखा है. परन्त राजा ने जब प्रापको प्रौ मुझको बुलाकर पूछा तो तुम्हारे अन्दर जो कपट है उसको मैंने भली भांति जान लिया है। तुम्हारे जब पाप का उदय पायेगा तब शीघ्र तुम्हें उसका फल मिलेगा ॥२७॥
शोरिमद कळिट वेंदन शेवियुर नाळू बंदिइप्प । परिशिनालकैप्पा केटुं परवरलिडि विट्टान ॥ सुर कुळल् करुंगट चेव्वाय तुडिइडे परवं यल्गुर ।
ट्रेरिव मादि रामदत्तै चित्त तोंडे छंद बड़े ॥२७६॥ अर्थ-इस प्रकार वह भद्रामित्र रात और दिन सदैव एक ही बात को राजमहल के बगल वाले वृक्ष पर बैठा बैठा कहता था। इतना होने पर भी राजा सिंहसेन ने इस ओर कोई लक्ष्य ही नहीं दिया। एक दिन उस सिंहसेन राजा को रामदत्ता नाम को पटरानी ने भद्रमित्र की बात सुनी और सुनकर उसको एक शंका उत्पन्न हुई ।।२७६।।
मुंबु पिन् बोंड, तम्मिल मलंबिला मूर्तिनूल पोर । पिबु मुन् पोंड वेंड, मुरैक्किन्ड्रान ट्रन्न पित्त ॥ नेबदोंड्रन ड्रनि यवत्ता नळत्त राम ।
मुंबु निड बकेटु पोयिन मुरैइ डेंडाळ ॥२७७॥ अर्थ-वह रानी विचार करने लगी कि यह भद्रमित्र वणिक् वृक्ष पर बैठा बैठा एक ही बात को दोहराता है यह क्या बात है ? और अन्य अन्य लोग इसको पागल कहते हैं वास्तव में यह पागल नहीं है । यदि पागल होता तो एक ही बात को बार बार में दोहराता नहीं । ऐसा विचार कर रानी ने अपने नौकर को भेजकर भद्रमित्र को बुलाया । तत्पश्चात् रानी ने भद्रमित्र को पूछा कि हे वणिक् ! तुम रोज रोज सदा एक ही बात को बार बार दोहराते हो, यह क्या बात है जो भी विषय कहना हो वह प्राद्योपान्त मुझे वर्णन करो। इस प्रकार रानी के वचन सुनकर वह वरिणक रानी को नमस्कार करके कहने लगा कि मै रत्नद्वीप
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